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Saturday, September 11, 2010

दुआ करिये, करते रहिये

मैंने फेसबुक के स्टेटस में डाला-मैंने तुम्हारे लिये एक ख्वाब देखा. तुम्हारे मेहनत करते हाथों को आराम देने का ख्वाब. सफर करते थक गए तुम्हारे पैरों को आराम देने का ख्वाब. उस ख्वाब को बदलने के लिए दुआ चाहिए. जो मुझे तुम्हारे दुआ के लिए उठते हाथों से ही मिल सकती है. कम से कम तुम्हारी दुआ मेरे काम तो आए, जिससे मैं उन सारी ताकतों को बटोर सकूं, जो तुम्हारे लिये देखे ख्वाबों को पूरा करने के लिए मिल सकते हैं.

आज ईद है. महीने भर की इबादत के बाद ये दिन आया है. दुआओं का असर होता है. हर दिन के अंत में हम जब हिसाब-किताब लगाते हैं, तो लगता है कि जैसे कहीं कोई रह गयी हो. हमारे आसपास की जिंदगी वैसी ही दिखती है. कहीं कोई बदलाव की गुंजाईश नहीं दिखती. मशीन हो गयी जिंदगी में जब कहीं लोग दुआ या किसी प्रेरणा की बात करते हैं, तो लगता है कि कोई जादुगर जादू के शब्दों को जाल फैला रहा है.

काफी कम लोग हैं, जो दूसरों के लिए दुआ या दूसरों की जिंदगी बदलने की बातें करते हैं. कोई सीएम बनना चाहता है, तो कोई जीएम. लेकिन मुझे वैसे कोई शख्स नहीं मिलता, जो दूसरों की बेहतरी के लिए दुआ करना चाहता. सिर्फ दुआ और कुछ नहीं. चंद लोगों के पास पैसा तो बहुत रहता है, लेकिन उनके घर या दोस्तों में उनके लिए दुआ करनेवाले नहीं होते. पूरी जिंदगी वे इसी इंतजार में रहते हैं कि कोई मोहब्बत की दवा के साथ उनके लिए दुआ का भी इंतजाम करे. बताया जाता है कि सच्ची दुआ करनेवालों के सारे गुनाह अल्लाह या खुदा माफ कर देता है.

 पीपली लाइव के कई नत्थे अभी भी हिन्दुस्तानी मिट्टी में हैं, हमारे हाथ उनकी बेहतरी के लिए नहीं उठते. सारे मीडिया के लोग ये जरूर कहते हैं कि इस फिल्म में उनका मजाक उड़ाया गया है. लेकिन ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए खबरों की मशीन बन गए मीडिया के आदमी के लिए कोई तहेदिल से दुआ नहीं करता. दुआ, उस सिस्टम के बदल जाने का , जो उन्हें इस करप्ट हो गयी जिंदगी का हिस्सा बन जाने को कहता है. मुझे किसी बाबा का उपदेश हजारों खबरों के बीच हमेशा ध्यान खींचता है, क्योंकि खबरों के बीच मशीन बन गयी जिंदगी में वो एक खालीपन भर जाता है.

फेसबुक में कोई स्टेटस मुक्ति का बोध कराता है. क्योंकि उनमें सही मायनों में उन अनजाने दोस्तों के लिए दुआ की सुगंध रहती है, जिनसे कोई कभी नहीं मिलता या मिल सकता, क्योंकि वे हजारों मील दूर हैं. लेकिन उनके लिए मन से दुआ निकलती है. हर रिश्ते के लिए खून की जरूरत नहीं होती. कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं, जो दुआ के सहारे ही बनते हैं. दूसरों की बेहतरी के लिए दुआ करिये, करते रहिये, यही कुछ बदलाव की किरण लाएगा. चाहे कश्मीर का संकट हो या दिल्ली में आयी बाढ़ का. दुआ करो कि संकट या टेंशन टल जाए. दुआ करो.

Tuesday, April 6, 2010

ये रिश्ते, जाने-अनजाने

आपने ये महसूस किया है कि हममें और आपमें एक सनक रहती है ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की। लेकिन ये पैसा एक सीमा के बाद मायने नहीं रखता। कई लोगों के पास ढेर सारा पैसा है, लेकिन खुशी का दो शब्द बोलनेवाला कोई नहीं होता। अंतिम समय में कोई ऐसा नहीं होता है, जो आगे बढ़कर ये आश्वस्त करे कि वह अंतिम यात्रा पर जाने के पहले साथ रहेगा। हमारे लिये सफलता की परिभाषा बदल गयी है। सफल वही है, जिसके पास संबंधों का खजाना हो और जीवन के उतार के समय उसे संभालने के लिए कई हाथ एक साथ बढ़ें। हमने महसूस किया है कि आगे बढ़ने की होड़ में एक-दूसरे की संवेदनाओं को मसलने का खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चलता। इस सांप-सीढ़ी के खेल में कब कौन आगे आ जाये और कब कौन पीछे, कोई नही जानता। ऐसे में कोई राजनीति काम नहीं देती। काम देते हैं तो वैसे सच्चे दोस्त ही, जो आपको सही या बुरे की पहचान कराते चलें। आप खुद से सवाल पूछिये, तो आप पायेंगे कि कोई आपका दोस्त आपके अपने सगे भाई से बढ़कर सहयोग करता और साथ निभाता मिलेगा। आज-कल तो बिजनेस का पाठ पढ़ाया जाता है। हर चीज को नाप-तौल कर चलने की आदत डाली जा रही है। लेकिन क्या किसी सुनामी के समय कोई सिस्टम काम करता है। उस सुनामी के बाद जो हाथ संभालने को आगे बढ़ते हैं, उन हाथों के मालिक ही सच्चे दोस्त कहलायेंगे। पता नहीं क्यों, इन रिश्तों का अहसास कहीं दब सा गया था। लेकिन जब फेसबुक पर रिश्तों की घोषणा करते पाता हूं, तो लगता है कि रिश्तों के खेल में हम बेईमानी कर रहे हैं। सच्चे रिश्ते दिखावा या घोषणा करना नहीं मानते। न उनके लिए बोली लगायी जाती है। जब आप एकांत में हों, तो आपको उस रिश्ते का स्नेह भरा स्पर्श हमेशा गुदगुदाता महसूस होगा। जैसे कि किसी छोटे बच्चे ने आपके सिर पर हल्की सी थपकी दी हो और आप लपक कर उसे दुलार करने के लिए आगे बढ़े हों। उम्र के साथ मेरे लिये रिश्ते की अहमियत गाढ़ी होती जा रही है।
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