इंग्लैंड पर जीत के बाद मेन रोड में सेलिब्रेशन |
मेरा शहर 20 साल पहले यानी 1990-92 में हरियाली के लिए जाना जाता था. गोस्सनर कॉलेज में मैं पढ़ता था. याद आता है कि गोस्सनर कॉलेज से रांची कॉलेज और वहां से घूमते-घामते मोरहाबादी होते हुए घर तक साइकिल यात्रा करना. सुखद, यादगार और मन को छू लेनेवाले छायादार पेड़ों के साथ अपनी दोस्ती. उस समय न तो आज की तरह करियर बनाने की फिक्र रही और न ही कुछ कर दिखाने का जुनून था.
२०१३ की जनवरी में आज भी उन्हीं रास्तों से होकर गुजरना होता है, लेकिन अब वह बात नहीं. बात अगर कल की ही करें, तो शहर में घूमने का एक बहाना मिल गया और मौका था वन डे इंटरनेशनल मैच का. मैंने भी अपने साथी के साथ इंटरनेशनल स्टेडियम का एक चक्कर जाकर लगाया. शहर के बदलते मिजाज को भांपा. रास्ते में मोटरसाइकिल पर सड़कों की लंबाई मापने के वक्त जेहन में वही पिछली यादें चक्करघिन्नी की तरह आ और जा रही थी. शहर बदल गया, लोग बदल गए और अब इसका मिजाज भी इंटरनेशनल हो चला. बड़े-बड़े होटल, इंटरनेशनल एयरपोर्ट और इंटरनेशनल स्टेडियम अब शहर के मिजाज को काफी हद तक बदल चुके हैं.
इंटरनेशनल स्टेडिटम के बाहर पेड़ पर से मैच का नजारा लेते लोग |
सिटी के इंटरनेशनल स्टेडियम में जुटी भीड़ |
वैसे इंटरनेशनल होता शहर बाकी चीजों में लोकल होकर न रह जाए, ये ख्याल रखना होगा. छोटे शहर बड़े बनते जरूर हैं, लेकिन उसमें अमीर-गरीब का फासला भी बढ़ता है. शायद रांची जैसे पहले के छोटे शहर इस मामले में गलती कर रहे हैं. कहीं-कहीं शायद चूक हो जा रही है. वैसे रांची के जनता शानदार मेहमाननवाजी के लिए भी शुक्रगुजार है. तीन दिनों तक मस्ती, जुनून का ऐसा आलम छाया रहा कि अखबारों के पन्नों में दूसरी खबरों के लिए जगह कम ही बची. ऐसा स्वागत हुआ कि अंग्रेज क्रिकेटर्स भी इस पूरे जुनून को कैमरे में उतारते रहे. मेजबान रांची सबके दिलों को खुश कर गई. रांची राइनो का राइनो स्टाइल भी पॉपुलर हो रहा है. नए साल के पहले महीने में बदलाव का ये पैगाम पूरे साल के लिए जोश दे गया. हम तो बस एक शब्द में कहेंगे-वेलकम यू इन न्यू रांची.
2 comments:
कुछ चीजों बदलाव अच्छा लगता है तो कुछ में अवांछित. अच्छे बदलाव को देखना बहुत सुखद है... काफी दिनों बाद आपकी कोई पोस्ट मिली...
सन १९९८ में दो बार राँची जाना हुआ, हरा भरा चित्र ही याद आता है उसका। प्रकृति विकास को स्थान दिये जा रही है, राँची में स्वागत है।
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