पहले हम सब गुनगुनाते थे। लोक गीत, लोरी और फिल्मी धुन ऐसे होते थे कि लोग उसे याद कर गुनगुनाते थे। गुनगुनाना यानी कि मन ने जब चाहा, अपने ही अंदाज में मस्त होकर अपनी ही धुन में गानों के बोल लबों पर आ गये। भाई, हम तो गुनगुनाते हैं। गुनगुनाते हैं, बेफिक्र होकर, लेकिन उन लोगों को क्या कहेंगे, जो बेफिक्री के अंदाज को छोड़कर सिफॆ सुनते हैं, क्योंकि टेंशन और आज-कल के कानफाड़ू संगीत ने उनकी उस नेचुरल फीलिंग को ही खत्म कर दिया है। आज न तो वह संगीत और न ही फिल्मी धुन। न ही आज की पीढ़ी पुराने गानों को सुनने की हिमायती है। कभी लोगों को सहगल के गीत अच्छे लगते थे। आज तक किशोर, रफी, मन्ना डे के गीतों के अलावा भजन और गजल लोगों की अंतरात्मा में बसे हुए हैं। ढलती हुई शाम हो या रात, हर थीम पर पुराने गीतकारों ने गीत रचे हैं। जाहिर है, उनके बोल आज भी खुद ब खुद लबों पर आ जाते हैं।
इधर जमाना बदला, लोग बदले और बदल गयी है आज की जिंदगी। बढ़ते प्रेशर, टेंशन और शोरगुल में सुकून और चैन कहीं खो सा गया है। न चैन है और न आराम। न मस्ती है, न आनंद। हर पल मन कुछ पाने को बेचैन है। रिजल्ट सामने है, जैसे ब्लड प्रेशर, अनिद्रा, हाइपरटेंशन आदि। रोज लगातार बढ़ रही महंगाई और ब्याज दर ने हमारी नींद हराम कर रख दी है। ऐसे में जाहिर है, लोग बेफिक्र होकर कब और क्या गुनगुनायेंगे। वैसे रिसचॆ करनेवालों ने भी पाया है कि सामान्य जीवन जीनेवाला व्यक्ति ज्यादा खुश रहता है। पहले लोग सुबह में उठते, अखबार पढ़ते और सामाजिकता के साथ बातचीत का दौर चलता। जिंदगी सामाजिकता की भींगी खुश्बू से महकती रहती थी। फिर शाम में भी लोग अपनी थकान भूलकर मिलते-जुलते और टहलते थे। पर अब तो सुबह नौ बजे से छह बजे शाम तक की नौकरी ने हमारी जिदंगी ही बदल डाली है। हमारा लाइफ टेंशन फुल हो गया है। बेफिक्र होकर गुनगुनाने का समय ही नहीं है। गुनगुनायेंगे कब? इसलिए समझिये, जानिये और बदलिये। साथ ही गुनगुनाइये, कभी-कभार ही सही। क्योंकि यह आपकी जिंदगी को ८० फीसदी न सही, २० फीसदी तो बदलेगा जरूर। इसलिए गुनगुनाइये
गुनगुना रही है ......खिल रही है कली-कली
Wednesday, August 20, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
chithajagat me aapka swagat hai. niyamit lekhan ke liye meri shubhakamnaye.
aap apna word verification hata le taki humko tipani dene me aasani ho.
सही कहा, यह तो सिद्ध भी हो चुका है कि संगीत में आपको रिफ्रेश कर देने की ताकत है। तो गाते रहिए गुनगुनाते रहिए.. हमेशा खुश रहिए।.
अंताक्श्ड़ी खेलेगें हमारे साथ?…:)हम आप से पूरी तरह सहमत, गुनगुनाना बहुत जरूरी है जीने के लिए और हम हर समय यही करते हैं
खिल रही है कली-कली...अच्छा लिखा है।
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। लगातार लिख्तेन रहें।
ब्लाग परिवार में.. स्वागत है आपका
.
आओ महारथी.. आओ
स्वागत है..
Post a Comment