आज चारों ओर अभिनव बिंद्रा की गूंज है। हो भी क्यों नहीं, उसने ऐसा कर दिखाया है, जिस पर सबको नाज है। पर अभिनव की कहानी कुछ आसान नहीं रही। उसने इस सफलता को पाने के लिए अपना सौ प्रतिशत दांव पर लगा दिया। उसने सफलता पाने के बाद कहा कि उसका निशानेबाजी के दौरान कोई ध्यान रिकाडॆ बनाने या गोल्ड मेडल जीतने पर नहीं था, उसने तो बस अपना निशाना सही बैठाने की कोशिश की। अगर थोड़ी भी चूक हुई होती, तो वह काफी पीछे रह गया होता। अभी प्रतियोगिता से पहले की गयी तैयारियों के बारे में जैसा दिखाया गया, उससे तो टारगेट के प्रति हंडरेड परसेंट उसकी कमिटमेंट का पता चलता है। उसकी सफलता के पीछे उसके माता-पिता का भी योगदान सराहनीय रहा। पहली सफलता की सीढ़ी तो उन्होंने ही तैयार की।
आज अगर इस देश को और सौ बिंद्रा चाहिए, तो यहां की सरकार और हमें अपने माइंडसेट को पूरी तरह बदलना होगा। खेल और खिलाड़ी दोनों को वह लेवल मुहैया कराना होगा, जिससे वह सम्मान पा सकें और बेफिक्र होकर अपनी तैयारी कर सकें। सिफॆ क्रिकेट को लेकर पसीना बहाने से कुछ नहीं होगा। चीन को देखिये वहां सरकार ने ऐसी व्यवस्था की है कि आज उस देश के खिलाड़ी अमेरिका से कड़ी टक्कर ले रहे हैं। खेलों के प्रति अब सरकार अपना माइंडसेट बदले और प्रोफेशनल एटीट्यूड लाये।
Monday, August 11, 2008
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