भागलपुर-पूणिॆया का रास्ता, रास्ते में मिलती कोसी नदी, दूर तक फैले खेत और तेज हवा। शायद यह किसी उपन्यास के अंशों का हिस्सा लगे, लेकिन यही है मेरी यादें। बिहार के अंदर के इलाकों में उतना नहीं घूम पाया हूं, लेकिन अपना मूल स्थान बिहार में होने के कारण उसकी मिट्टी की सुगंध और अपने गांव में बिताये गये पल हमेशा बरबस याद आ जाते हैं। खबर है कि कोसी ने राह बदल दी है। लेकिन इससे ज्यादा बड़ी खबर यह थी कोसी ने रौद्र रूप धारण कर लिया है। लाखों की आबादी घर-द्वार छोड़कर मंदिरों, ऊंची बिल्डिंगों और सेक्योर जगहों पर जिंदगी और मौत के बीच दिन गुजार रही है। पटना और अन्य जगहों पर लोग मोबाइलों पर मदद के संदेश रिसीव कर रहे हैं। टीवी चैनलों पर आ रही तस्वीरें भी रूह कंपा देनेवाली है। उत्तर बिहार रो रहा है। मधेपुरा डूब चुका है। सारी व्यवस्था तहस-नहस हो चुकी है। कोसी की धाराओं ने हमेशा कहर बरपाया है, लेकिन इस बार इसने कुछ ज्यादा ही प्रभावित किया है। बिहार के मुख्यमंत्री भी कोसी के इस लाचार रूप के आगे बेबस नजर आ रहे हैं। वैसे जरूर सरकारी मशीनरी अपने स्तर से लोगों की मदद का प्रयास कर रहा है। रेल मंत्री ने भी प्रधानमंत्री से मिलकर बिहार में सेना भेजने की मांग की है।
हम सोचते हैं कि इन महाप्रलयों या यू कहें, इन आपदाओं से निपटने में हम इनएफिशिएंट क्यों हैं? हर मुसीबत, हर कहर झेलने को विवश बिहार की जनता बार-बार यह सवाल पूछ रही है, क्यों इन मामलों में सिस्टम कौलेप्स करता नजर आता है। कहीं न कहीं हर समस्या का समाधान है। इसमें ज्यादा कुछ नहीं, बस इतना ही कहना चाहूंगा कि सरकार इन आपदाओं से निपटने के लिए आगे कुछ ठोस कदम जरूर उठाये।
Tuesday, August 26, 2008
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2 comments:
सरकार इन आपदाओं से निपटने के लिए आगे कुछ ठोस कदम जरूर उठाये-वाजिब मांग!!
barish nepal ki ghatiyon mein hoti hai aur uska khamiyaza bihar ki janta har saal bhugatti hai. rajya sarkarein ye keh kar palla jhad let hain ki Nepal mein bandh banwane mein kendra sarkaar hi pahal kar sakti hai.
Par na koyi ye dabaav mepal par banata hai aur samasya jyon ki tyon reh jati hai.
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