Friday, August 29, 2008
क्या लौटेंगे भारतीय हॉकी के सुनहरे दिन ?
आपने चक दे इंडिया फिल्म देखी होगी। काफी खुश हुए होंगे। थिएटर से निकलने के बाद जुनून सवार होगा, भारत को हॉकी में चैंपियन बनते देखने का। लेकिन महोदय, हकीकत जानकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जायेगी। क्योंकि जब जड़ ही मजबूत नहीं है, तो पेड़ों में हरियाली देखने का जज्बा भला हम क्यों और कैसे पाल लें। २९ अगस्त को अखबार में भारतीय हॉकी के जादुगर मेजर ध्यानचंद के संस्मरण में लेख छपा। अच्छी यादों को पढ़ कर बेहतर लगता है। लेकिन बरियातू हॉकी सेंटर, जिसने कई अंतरराष्ट्रीय महिला हॉकी खिलाड़ियां दिये, की बदहाली की रपट पढ़ कर मन दुखी हो गया। क्योंकि हम इस सेंटर को अपने स्कूल के जमाने से देखते आये हैं। यह सेंटर झारखंड की राजधानी रांची में स्थित है। इस सेंटर ने यशमनी सांगा, विश्वासी पूतिॆ, दयामनी सोय और न जाने कितने अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी दिये।
हॉकी हमारी शान थी। हम २९ अगस्त को खेल दिवस मनाते हैं। यह हमारा राष्ट्रीय खेल भी है। अच्छी बात है। लेकिन यादों के सहारे आप कब तक अच्छी फसल काट पायेंगे। छपी रपट के अनुसार बरियातू हॉकी सेंटर की लड़कियों को डायट के रूप में सिफॆ ४० रुपये प्रतिदिन मिलते हैं। हाल में विजेंद्र, सुशील और अभिनव ने ओलंपिक में पदक हासिल किये, तो उन पर जैसे रुपये की बरसात होने लगी। जरा पीछे मुड़ कर उनके संघषॆ की कहानी भी जानिये। कैसे उन्होंने खुद के बल पर परिश्रम कर इन बुलंदियों को छुआ है। कुछ दिनों पहले मीडिया में भारतीय हॉकी संघ के बारे में जब खबरें आ रही थीं, तो लग रहा था, ये कोई खेल महासंघ नहीं, बल्कि राजनीति का अखाड़ा है।
ओलंपिक में चीन ने सारे रिकाडॆ तोड़ डाले। हम सबने चीन की तैयारियों के बारे में हाल में देखा और जाना भी था। उनकी तैयारियों के बारे में काफी कुछ बताया गया था। बताया गया था कि कैसे उन्होंने विदेशी तकनीक को देशज तकनीक में बदला। सिरमौर बनने के लिए पूरी तैयारी की। हर कोने से। देश के हर हिस्से से बेहतर खिलाड़ियों का चयन किया। उनमें जीत का जज्बा भरा। तकनीकी मदद, साइकोलॉजिकल प्रिपरेशन और जीतने के लिए अदम्य इच्छा पैदा की। हमने देखा, कैसे फिर वे सिरमौर बन गये। पूरी दुनिया के खेल जगत में आज उनका पताका लहरा रहा है। जाहिर है, हमारा देश भी विफलताओं से सबक लेकर कुछ तो बेहतर करे।
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1 comment:
शुभकामनाऐं.
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