टीवी खोलता हूं कि एंकर जोर से चिल्लाते हुए डराता है
तैयार हो जाइये, बस दो ही दिन हैं जिंदगी के।
बाप-रे-बाप बस दो ही दिन
मन वैसे ही रोज के टेंशन से झल्लाया रहता है,
ऊपर से एक नया टेंशन।
पूरा धरितये खत्म हो जायेगा।
अपने हनुमान जी को याद करके फिर आगे देखते हैं।
तभी एंकर साहब कहते हैं- बस एक ब्रेक के बाद।
धत तेरे की, टेंशन और बढ़ गया।
साबुन, तेल, गाड़ी, परफ्यूम न जाने किसका-किसका एडवरटाइजमेंट आने लगता है।
मन स्प्रीचुअल हो गया
भइया, जब धरतिये खत्म हो रहा है, तब अब इ सब दिखाने से क्या फायदा?
फिर एंकर साहब आते हैं, चिल्लाते हैं, खत्म हो जायेगी धरती।
अरे यार, इ तो कब से सुन रहे हैं, आगे तो बताइये।
आगे बताते हैं, एंकर साहब -साइंटिस्ट लोग महामशीन से धरती के भीतर विस्फोट
कर ब्रह्मांड के जन्म लेने की कहानी के बारे में जानेंगे।
तो ये बात है?
माने, हम अपना पैर में अपने कुल्हाड़ी मार रहे हैं।
टेंशन कमा-नेचर नहीं, आदिमये प्रलय लानेवाला है एक्सपेरिमेंट करके।
फिर सोचा डरना क्या और कैसा?
जिंदगी जियो बिंदास, टेंशन नहीं लेने का। खाने-पीने का और मौज करने का।
पूरी दुनिया के खत्म हो जाने की इतनी भविष्यवाणियां हैं कि आदमी जीना छोड़ दे।
इसलिए हम तो कहेंगे-जब तक सांस है, तब तक आस है।
नो लफड़ा-नो किचकिच।
डरना नही हैं, मस्त रहना है, पहले की तरह।
Monday, September 8, 2008
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5 comments:
बहुत सही कहा है आपने.
bindaas bole bhaai aap to...
बकवास करते है tv वाले..
प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
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