Thursday, October 9, 2008

लिव इन रिलेशनशिप और भारतीय समाज

बच्चों को खेलते-कूदते देखता हूं, तो मन उल्लासित हो उठता है। लेकिन दूसरे ही पल दुखी भी हो जाता है, अभ्यस्त आंखें बच्चों के लिए उन वृद्धों और बड़ों को खोजता है, जिनके संरक्षण में बच्चे हमेशा पलते-बढ़ते थे। हमारा बचपन तो दादी मां की कहानियों और नानी घर की गलियों में बीत गया, लेकिन आज के बच्चे इन सबसे दूर हैं। शायद ये हमारी सोच की गलती है। गलती ये हैं कि हम सिफॆ अपने लिये सोचते हैं। हम ये नहीं सोचते हैं कि हम अगली पीढ़ी के लिए कैसा माहौल तैयार करके जा रहे हैं। हमारे बुजुरगों ने सोचा, पर हम नहीं सोच रहे। हकीकत तो ये है कि व्यक्तिवादी सोच ने लिव इन रिलेशनशिप जैसी बात को मान्यता देने के लिए सरकार को बाध्य कर दिया है। अंतरविरोधों में जीता समाज महानगरों में लोगों को एकाकी जीवन जीने को बाध्य कर रहा है। इस दौर में महानगरों में महिला-पुरुष बंधन और दायित्वों से मुक्त होकर एक साथ रहना पसंद कर रहे हैं। ये एक तरह से हमारी भारतीय संस्कृति में वैवाहिक संस्था पर प्रहार जैसा है। महाराष्ट्र सरकार की इस पहल ने महानगरों के अलावा देश की उस आबादी को अचंभित कर दिया है, जो ऐसे बदलाव से अनजान है। आज भी महानगरों को छोड़ कर दूसरी जगहों पर इसे गलत दृष्टि से देखा जायेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। जिन पश्चिमी देशों की नकल कर हम अपना जीवन बिगाड़ रहे हैं, उन देशों के समाज की क्या हालत है, ये भी जानना जरूरी है। पश्चिमी देश आज खुद विवाह और परिवार जैसी संस्था को बचाने में लगे हुए हैं। वे खुद परेशान हैं। तब हम फिर क्यों, उस गलत चीज को अपनाने और मान्यता देने की सोचें ये हमारी समझ से बाहर की बात है। समाज अगर गलत दिशा तय करे, तो उसे समझाना सरकार का काम होना चाहिए। जहां तक महिला शोषण रोकने की बात है, तो कई रास्ते हो सकते हैं, जिन पर विचार-विमशॆ किया जा सकता है। लेकिन अपनी ही संस्कृति को पैरों तले रौंद कर चलने की कवायद मंजूर नहीं हो सकती है। देखना है कि केंद्र का इस प्रस्ताव पर क्या नजरिया होता है।

3 comments:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

धर्म कार्य हित विवाह का, स्वीकारा अनुबन्ध
भोग नहीं था केन्द्र में,शादी नही थी बन्ध.
शादी नही थी बन्ध,चार पुरुषार्थ दिलाती.
जीवन मे सुख शान्ति, अन्त मे मोक्ष दिलाती
कह साधक कवि, लिव-इन है केवल सेक्स-हित.
भारत मे अनुबन्ध ब्याह का, धर्म-कार्य-हित.

Unknown said...

good going mr prabhat, what do u think about gay society.

प्यार की कहानियाँ said...


Ek Achhi Maulik Rachna Aapke Dwara.

Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

अमर उजाला में लेख..

अमर उजाला में लेख..

हमारे ब्लाग का जिक्र रविश जी की ब्लाग वार्ता में

क्या बात है हुजूर!

Blog Archive