Tuesday, October 21, 2008

कथित सुलझे समाज पर तमाचा है यह मौत

स्कूल के जमाने में सीरियल देखी थी तमस। देश विभाजन के समय उभरे तनावों को उकेरते हुए सीरियल ने ऐसी तस्वीर रखी थी कि मन उस स्थिति की कल्पना करके ही सहम जाता है। आज जब देश में खाने और पहनने के लिए आसानी से सबकुछ मिल जा रहा है, तो लगता है, जैसे लोगों के दिलोदिमाग से उन यादों की तस्वीर धुंधली हो गयी। इसी कारण शायद राज ठाकरे जैसे लोग कहते हैं-गांधी के अहिंसा को समझनेवाले अंगरेज चले गये।

आजादी के समय को देखने-समझनेवालों की एक पीढ़ी गुजर गयी। जो बचे हैं, शायद वे भी अंतिम दिन गिन रहे होंगे। ऐसे में नयी पीढ़ी के नेताओं को राष्ट्र निमाॆण की बातें बेमानी नजर आती हैं। समाजवाद, अहिंसा, प्रेम, सहिष्णुता जैसे शब्द बेकार और निरथॆक लगते हैं। कहते हैं, शीशे को तोड़कर जोड़ा नहीं जा सकता। वैसे ही शायद देश को तोड़कर जोड़ा नहीं जा सकता है। देश से अलग हुए पाकिस्तान, बांग्लादेश आज खुद हमारे खिलाफ खड़े नजर आते हैं। देश के हर प्रांत में अपनी अलग राजनीति नजर आती है। डर, भय, संशय और आतंकवाद का राक्षस जब हावी होने को है, तब राज ठाकरे जैसे नेताओं की पूछ खुद ब खुद बढ़ जा रही है।

जो परीक्षाथीॆ मुंबई एग्जाम देने गये थे, उन्होंने कम से कम ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की होगी, जैसी उन पर गुजरी है। बिहार के एक लड़के की मनसे कायॆकताॆओं की पिटाई से घायल होने के बाद मौत हो गयी। यह मौत एक विकासशील और सुलझे हुए समाज पर तमाचा है। यह समाज के दिलोदिमाग को झकझोरने के लिए काफी है। पटना में भी पिटाई से आक्रोशित लड़कों ने स्टेशनों में अपना गुस्सा उतारा। नुकसान सब जगह राष्ट्रीय संपत्ति का ही हुआ। क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हिंसात्मक हरकतों को लगातार सहन करना मानवीय है। अगर नहीं है, तो इस बारे में केंद्र और राज्य सरकारें ठोस कदम क्यों नहीं उठाती हैं? वतॆमान हालातों को देखकर तो ऐसा लगता है कि दूसरे देश तो हम लोगों से कई मायनों में ठीक हैं। दुख-ददॆ और विस्मय की ऐसी हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हो गयी है कि अब इस मुद्दे पर कुछ भी कहना पाप ही लग रहा है। शायद पाप से भी ज्यादा .......

1 comment:

Unknown said...

इस कथित सभ्य समाज पर तो आये दिन तमाचों के निशान पड़ते ही जा रहे हैं. कहीं किसी रूप में और कहीं किसी अन्य रूप में. मिल-जुलकर रहने का हमारा इतिहास केवल पुस्तकों में बंद है. फिर भी आप निश्चिंत रहिये, यह देश बंटेगा नहीं. अधिक से अधिक एक संयुक्त राष्ट्र बन सकता है, जिसके लिए कोई पासपोर्ट अपेक्षित नहीं होता.

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