मैंने आज एक पोस्ट लिखी-ब्लागर पत्रकार नहीं हो सकते। आशा थी लोगों ने पढ़ा भी होगा। पर एनोनिमस भाई साहब ने टिप्पणी लिखने के दौरान एक व्यक्ति विशेष का नाम लेकर मामले को ही मोड़ दिया है। आशा थी कि इस मुद्दे पर साथॆक बहस होगी। लेकिन जब मामला व्यक्तिगत सीमा का उल्लंघन करता लगे, तो उस पर एतराज जताना जरूरी हो जाता है। इसी कारण बाध्य होकर मुझे यह कहना पड़ रहा है कि एनोनिमस भाई साहब की टिप्पणी बेहद अफसोसजनक है।
मैंने अपने उस पोस्ट में जवाब में जो टिप्पणी लिखी, उसे वैसा ही रख रहा हूं
पत्रकारिता और ब्लागिंग में यही फकॆ है। एनोनिमस भाई साहब ने सीधे नाम लेकर टिप्पणी कर दी। कोई कैसा है, ऐसा कहने या दावा करने से पहले, उन्होंने कुछ सोचा। नहीं सोचा। क्योंकि ब्लाग जगत को कुछ लोगों ने व्यक्तिगत कुंठा और आक्षेप जताने का मंच बना रखा है। एनोनिमस भाई साहब को यह खराब लग सकता है, लेकिन सच यही है। पत्रकारिता में किसी पर जब आप आक्षेप या आरोप लगाते हैं, तो उससे संवाद करना या पक्ष लेना जरूरी होता है। सामान्य शिष्टाचार भी यही है कि आरोप-प्रत्यारोप लगाने से पहले दूसरे पक्ष की भावनाओं का भी ख्याल रखा जाये। जिस दिन ब्लाग में लिखनेवाले इतने परिपक्व हो जायेंगे कि दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखने लगेंगे, उस दिन सचमुच मीडिया के अंग होने का दायित्व निभाना शुरू कर देंगे। इसलिए ही मैंने पोस्ट के शुरू में ही कहा है कि हिन्दी ब्लाग जगत ने अभी दौड़ना शुरू किया है।
ऐसा करना जरूरी समझा। क्योंकि किसी भी मामले में सीखा रेखा को लांघना ठीक नहीं होता।
Saturday, November 15, 2008
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