Monday, December 8, 2008

पब्लिक ने नेताओं को उनकी औकात बता दी

भारतीय राजनीति परिपक्व यानी मैच्योर हो चुकी है। उमा भारती पराजित हो गयीं। उमा भारती का गुस्सा हम लोगों ने देखा था, पांच साल पहले। आडवाणी के खिलाफ उनके विद्रोही तेवर देखे। आज मीडिया के बल पर चुनाव लड़नेवाली उमा चुनाव हार गयीं। विजया राजे सिंधिया का मुख्यमंत्री पद छीन गया। छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पारटी किनारे कर दी गयी। हर जीत और हार के पीछे एक कहानी है। एक कहानी ये भी है कि जनता को मूखॆ मत समझो। जिस पब्लिक को सोते-जागते जुमलों की कसरत से भटकाने की कोशिश नेता भाई लोग कर रहे थे, उसी पब्लिक ने नेताओं को उनकी औकात बता दी।

तीन चीजें देखने को हैं -
पहला-आतंकवाद के मुद्दे ने भाजपा को सीटें जीतने में मदद नहीं की
दूसरा-जिन सरकारों ने अच्छा काम किया, वे ही सत्ता में लौटीं
तीसरा-अब चमत्कारिक व्यक्तित्व का जादू नहीं चलता।


निष्कषॆ ये है कि भाई काम चाहिए। यदि काम करेंगे, तो आप जीतेंगे, नहीं तो हारकर पान की गुमटी खोलने के लिए तैयार रहिये। ये जो पब्लिक है सब जानती है, अंदर क्या है, बाहर क्या है, सब जानती है, ये जो पब्लिक है। वैसे पब्लिक के लिए भी कहना होगा कि ये रिहसॆल तो ठीक है, लेकिन असली फाइनल मैच में अपना दिमाग स्थिर रखना जरूरी है। एक बात तो साफ है आतंकवाद का मुद्दा हो या रोजी-रोटी का, पब्लिक बेवकूफ बननेवाली नहीं है। इस बार न तो हिन्दुत्व का दांव चला, न एडवरटाइजमेंट दिखाकर मूखॆ बनाने का गेम। वैसे भाजपा का प्रयास सराहनीय रहा। उसे मैं बेहतर एडवरटाइजमेंट बनाने के लिए सौ प्रतिशत की बधाई खुले दिल से देता हूं। आज पब्लिक के पास पैसा है, पावर है और है भारत माता द्वारा दिया गया नॉलेज। ये नॉलेज बताता है कि जो काम करे, वोट उसे ही दो, भले ही वह कोई भी हो।

2 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

परिणाम ऐसे हैं कि कोई पार्टी लाइटली न ले पायेगी!

Anil Pusadkar said...

सहमत हूँ छत्तीसगढ मे तो अधिकाँश दिग्गज़ो को धूल चटा दी जनता ने.

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