Sunday, December 14, 2008

क्या पाकिस्तानी समाज अंधा हो चुका है?

कसाब नामक आतंकी जिंदा पकड़ा जा चुका है। मुंबई पर कहर बरपाने के बाद उसके जज्बात जाग उठे हैं। वह जिंदगी चाहता है। वह पाकिस्तान से मदद की उम्मीद जताता नागरिकता का हवाला देकर। पाकिस्तान के बगल में अफगानिस्तान बरबादी की दास्तां लिखवाने के बाद अब धीरे-धीरे सटे हुए पाकिस्तानी इलाकों को प्रभावित कर रहा है। आतंकी हमलों में बेनजीर की मौत और होटल में विस्फोट जैसी घटनाओं के बाद भी पाकिस्तान डिप्लोमैसी की नीति अपना रहा है। पाकिस्तानी शासक वहां कायम आतंकी संगठनों के पूरी तरह सफाये के लिए कृतसंकल्प नजर नहीं आ रहे। और पुख्ता सबूत चाहिए की रट लगाये बैठे हैं। क्या पाकिस्तान को सुलग रही आग दिखती नहीं है या फिर वह खुद आत्महत्या करने को आमादा है। कश्मीर की रट लगाये पाकिस्तान में ये क्या हो रहा है? धमॆ के नाम पर जैसी कट्टरता पाकिस्तान में दिख रही है, वह अजीब और सकते में डालनेवाला है। सियासत के खेल में जो कुछ हो रहा है, वह काफी खतरनाक संकेत दे रहे हैं। इस बयानबाजी के खेल में मुंबई का आतंकी हमला शायद बिसार दिया जाये, लेकिन इस गंदे खेल ने सहनशीलता की सीमा पार कर रख दी है। पता नहीं, पाकिस्तान के लोगों को इस आतंकवाद में कौन सा आकषॆण दिखाई देता है कि वहां के जवान लड़के इसके शिकार हो जा रहे हैं। इस मानसिकता को पाकिस्तान हुक्मरान समझें। वैसे पाकिस्तानी नेता अंगरेजी बढ़िया बोलते हैं और पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित लगते हैं। ऐसा लगता है कि वहां का जो एलिट तबका है, उसका समाज के निचले हिस्से से कोई वास्ता नहीं है। इसलिए वह ऐसी बातें कर रहा है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो और मामला सिफॆ राजनीतिक हो। अब भारतीय राजनेता अब तक के सियासत के खेल में विफल होते नजर आ रहे हैं। समय बीतने के साथ उनकी बयानबाजी का महत्व और उनका कद घटता चला जायेगा। इससे अच्छा तो मुशरॆफ की नीति थी। वे कम से कम इन कट्टरपंथी ताकतों से टकराने का माद्दा रखते थे। वे कट्टरपंथियों को मात देने की नीति पर कायम थे। जरदारी इन मामलों में मुशरॆफ से कमजोर ही हैं और उन्हें सिफॆ अपनी कुसीॆ बचाने की लगी है। ऐसे में वो क्या पाकिस्तान में आतंकवाद का खात्मा कर पायेंगे, इसमें संदेह है। पाकिस्तानी समाज और सरकार अभी धुंध की शिकार है। ये धुंध जब तक साफ होगा, काफी देर हो चुकी होगी।

3 comments:

Varun Kumar Jaiswal said...

जी हाँ वाकई पाकिस्तान के हालत इस बात का इशारा करते हैं कि
मजहबी उन्माद की झूठी बुनियाद पर बना मुल्क ख़ुद तो डूबेगा ही साथ ही में पूरे
इस्लामी जगत को भी जेहाद की भेंट चढ़ा जाएगा | मुझे तो फ़िक्र इस बात की है कि
इस जेहादी लड़ाई में भारत को अंततः क्या कीमत चुकानी पड़ेगी ?
जो भी हो हमें तो यह जेहाद बहुत महँगा पड़ने वाला है |

युग-विमर्श said...

पाकिस्तानी समाज अँधा नहीं हुआ है, दुर्बल और अपाहिज हो चुका है. ज़रदारी और उनके जैसे लोग इन कट्टर-पंथियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते. कारण यह है कि उन्हें पनपने का अवसर भी उन्होंने ही दिया है. पाकिस्तान का विनाश निश्चित है. इस्लामी साम्राज्यवाद का स्वप्न देखने वाले आतंकवादियों के जो आदर्श हैं और जिनके नाम डेकन मुजाहिदीन की चिट्ठी में मीडिया को प्राप्त हुए थे उन्हीं महानुभावों के आदर्शों पर पाकिस्तान की सरकार भी चलती है. उनकी विचारधारा से भिन्न जो भी हो चाहे वह प्रोग्रेसिव मुसलमान हो या शीआ मुसलमान या ईसाई और हिन्दू, उसे तथाकथित इस्लामी आतंकवाद का शिकार होना है. और पाकिस्तान की सरकार मूक और अपाहिज सी खड़ी रहेगी. धर्म चाहे जो भी हो जब उसमें राजनीतिक शक्तियां अर्जित करने का नशा आ जाता है तो स्थिति यही बनती है. पाकिस्तान जब तक धर्म को राजनीति से अलग नहीं करेगा, वह विनाश के कगार की ओर धीरे-धीरे खिसकता रहेगा.

Gyan Dutt Pandey said...

पाकिस्तान रोग (rouge) स्टेट है।

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