(पुरानी पीढ़ी और नयी पीढ़ी के बीच रिश्तों को लेकर बहस छिड़ी। उसी क्रम में एक कहानी पर नजर पड़ी, जो शायद हमारा कान्सेप्ट कुछ क्लियर करे)
एक घर में दो ही सदस्य थे। एक सास और दूसरी उसकी बहू। सास का बेटा कहीं दूर मैदानों में नौकरी करता था। सास ने अपने शौक से एक बिल्ली पाल रखी थी। बिल्ली घर की रसोई में दखल देती रहती। जब सास रसोई में खाना पकाती, तो बिल्ली इध-उधर बतॆनों में मुंह मारकर व्यंजन जूठे कर डालती। और दिनों में तो चल जाता था, लेकिन जिस दिन सास के स्व पति का श्राद्ध होता, तो उस दिन व्यंजन आदि पकाने का काम होता। उस दिन भोजन आदि पकाने का काम शुरू करने से पहले सास बिल्ली को एक बड़े से टोकरे के नीचे बंदकर उस पर दो पत्थर रख देती। इस प्रकार सास तब तक निश्चिंत रहती, जब तक कि श्राद्ध समाप्त नहीं हो जाता।
नयी पीढ़ी कई बार पुरानी पीढ़ी की बातों को इसी तरह ग्रहण करती है, अविवेकपूणॆ ढंग से।
समय बीतते-बीतते एक दिन सास चल बसी। बिल्ली भी मर गयी। कुछ दिनों के बाद फिर वही श्राद्ध का दिन आया। बहू पिछले कई सालों से सास द्वारा बिल्ली को टोकरे से ढका जाना देखती आ रही थी। इसलिए वह सुबह-सुबह अपनी पड़ोसन के पास पहुंची और बोली-टोकरी तो हमारे घर में है, बस आज जरा अपनी बिल्ली उधार दे दीजिये।
नयी पीढ़ी कई बार पुरानी पीढ़ी की बातों को इसी तरह ग्रहण करती है, अविवेकपूणॆ ढंग से।
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