दिशोम गुरु शिबू सोरेन ना नुकुर के बाद देर रात तक शायद इस्तीफा देने की बात मान गये। झारखंड राज्य की धरती धन्य हो गयी। झारखंड आठ साल का बीमार बच्चा है, जो अपने पालक की तलाश में दर-दर भटक रहा है। जब बना था, तो एक उम्मीद थी। तब खनिज संपदा से भरपूर यह राज्य सिंगापुर बनने के सपने देख रहा था। बड़े-बडे़ वादे हुए। लेकिन ये कैसा दुरभाग्य है कि कोई भी सीएम यहां अपना कायॆकाल पूणॆ नहीं कर सका। राजनीतिक दृष्टिकोण से कई रिकाडॆ स्थापित हुए। उसी में गुरुजी ने सीएम रहते चुनाव हारकर रिकाडॆ बना डाला। अजब-गजब झारखंड की राजनीति में नेतागण बेशरमी की चादर ओढ़े हंसमुख चेहरा लिये टीवी कैमरे पर आलाकमान से बातचीत कर मामले को सलटाने की बात करते रहे।
एक राज्य जिसके दस से ज्यादा जिले उग्रवाद प्रभावित हों। जहां हर दिन उग्रवादी हत्या जरूर कर रहे हों। जहां लूट और अपराध का जंगल राज हो। जहां शाम होते ही राजधानी से बाहर की सड़कों पर सन्नाटा छा जाता हो? जहां की राजधानी की सड़कें उसके अब तक पिछड़े होने का अहसास दिलाती हों। जहां की व्यवस्था भगवान भरोसे हो, उस राज्य को क्या एक स्थायी और बेहतर सरकार मिलेगी? एक ऐसा सवाल, जो हर नागरिक पूछ रहा है। क्योंकि हर कोई इस फिजूल की राजनीतिक नौटंकी से परेशान है। पांच महीने गुजरते नहीं हैं कि नौटंकी शुरू हो जाती है। कुरसी की राजनीति ने सारे विकास के काम ठप करके रख दिये हैं। निश्चित रूप से यहां एक स्थायी सरकार की दरकार है। दूसरी ओर यहां के नेताओं में सत्तालोलुपता इतनी है कि सीएम बदल जाता है,लेकिन मंत्री वही रहते हैं। पहला निदॆलीय मुख्यमंत्री देनेवाला भी झारखंड पहला राज्य बना। इतने समीकरण हैं कि आप भी गड़बड़ा जायें। इस राज्य की दिशाहीन राजनीति को देखकर विश्वास डोल चुका है। शायद कल यानी १२ दिसंबर को शिबू इस्तीफा दे दें। लेकिन इसके साथ ही उनकी पकड़ सत्ता पर कैसी रहेगी और उनका कैसा रोल रहेगा, ये देखना दिलचस्प होगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
झारखण्ड में मंत्री द्वीप खरीदने की क्षमता रखता है और जनता जारजार रोती है!
सोरेन छाप लोगे कर्णधार हैं। क्या होगा!
झारखण्ड राज्य में राजनीतिक अस्थिरता कब तक बनी रहेगी। राज्य के राजनेता सिर्फ और सिर्फ अपनी कुर्सी बनाये रखने की जुगत में रहते हैं। यह कहना अनुचित नही होगा कि सभी नेता चाहे वह किसी भी दल का हो वो राज्य का विकास कम और अमना ज्यादा देख रहें हैं।
शिबू सोरेन तथाकथित चिरुडीह नरसंहार के अभियुक्त जिन्हें अदालत ने बाद में सजा भी दी वे राज्य के मुख्यमंत्री पद के लिये क्या क्या जुगत नही लगाये। परमाणु संधि से मिली कुर्सी भी अब चली गयी।
मुद्दा राज्य के विकास का है। कैसे हो राज्य का विकास जब नेता ही टिक नही पा रहे है या उसे टिकने नही दिया जा रहा है।
मधु कोड़ा के शासन में थोड़ी बहुत विकास की बयार बही थी शिबू सरकार ने बहती बयार को ही रोक दिया।
Post a Comment