
सुना है अनुराग कश्यप ने देव डी नामक फिल्म बनायी है शरतचंद्र के उपन्यास देवदास पर। देवदास को पूरी तरह से माडनॆ टाइम के हिसाब से एडजस्ट किया गया है। यानी इंडियन खाना को कहें चाइनीज अंदाज में पेश करने का सिलसिला शुरू है। पहले पुराने गानों के रिमिक्स अंदाज का दौर आया। कुछ लोगों ने पसंद किया, कुछ को नहीं। बिना मेहनत के रोजी-रोटी की जुगाड़ का सिलसिला चालू है। कहानी लेखक की जरूरत नहीं, बस पुराने उपन्यास के अंशों को आधुनिक परिवेश में ढाल दीजिये, हो गया स्क्रिप्ट तैयार। एक ऐसी परंपरा जहां लेखक की क्रिएटिविटी को चैलेंज किया गया है। सालों पहले देवदास के देव साहब बनकर शाहरुख लोगों के दिलों पर छा गया थे। एक टूटे हुए प्रेमी की शख्सियत हर किसी को प्रभावित करती है। देव का पारो के लिए रोना, उसके लिए आंसू बहाना और शराब की दुनिया में डूब जाना कहानी में जान डाले रहता है। इमोशनल अत्याचार की ये कहानी हर दशॆक बिना शरतचंद्र के देवदास के पढ़े जान गया है। चंद्रमुखी भी असर डालती है। लेकिन इस लव फैक्टर में शरतचंद्र की अनमोल कृति की आत्मा के साथ कितना न्याय किया जाता है। ये भी देखने लायक है। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या उपन्यास की मूल आत्मा को लोगों के सामने आधुनिक रूप में परोसा जा सकता है। हमारे ख्याल से ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि जिस उपन्यास के पात्रों की भावनाओं को समझने में सालों लग गये। जो अब तक लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं, उसे मॉडनॆ रूप में पेश कर सिफॆ बाजार से पैसे बनाने का ही एक प्रयास मालूम पड़ता है। देखना ये है कि इमोशनल अत्याचार के बहाने पब्लिक को बेवकूफ बनाने का फंडा कितने दिनों तक चलता रहेगा।
1 comment:
अच्छी पोस्ट है।यह फंडा तो चलता रहेगा।फिर किसी दुसरे रूप में चलेगा।
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