Saturday, February 7, 2009
कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूं अब तेरे काज।
एक प्राथॆना जो अच्छा लगा, यहां हम सबके लिए
कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूं अब तेरे काज।
पालन करने को आग्या तब मैं नियुक्त होता हूं आज।।
अंतर में स्थित रहकर मेरे बागडोर पकड़े रहना।
निपट निरंकुश चंचल मन को सावधान करते रहना।।
अंतरयामी अंतःस्थित देख सशंकित होवे मन।
पाप वासना उठते ही हो नाश लाज से वह जल भुन।।
जीवों का कलरव जो दिनभर सुनने में मेरे आवे।
तेरा ही गुणगान जान मन प्रमुदित हो अति सुख पावे।।
तू ही है सवॆत्र व्याप्त हरि, तूझमें सारा संसार।
इसी भावना से अंतरभर मिलूं सभी से तुझे निहार।।
प्रतिपल निज इंद्रिय समूह से जो कुछ भी आचार करूं।
केवल तुझे रिझाने को, बस तेरा ही व्यवहार करूं।।
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4 comments:
bahut hi sunder prarthna hai badhai
बहुत सुन्दर प्रार्थना है।
protsahan ke lie dhanyawad.
हे गोविन्द!
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