मैं एक आम आदमी हूं। मैं ये नहीं जानता कि स्लमडॉग मिलिनेयर क्या है और महंगाई की दर क्या होती है। मुझ ये नहीं पता कि सेंसेक्स किया है। रोज सुबह दोपहर की रोटी लेकर मजदूरी करने निकलता हूं। हर दिन एक फिक्र रहती है कि कुछ कमाकर लौटुंगा। न भविष्य की कोई योजना है और न अतीत का दुख। ईश्वर को मानता हूं। उसके अनुसार चलने की कोशिश करता हूं। मैं खबरों से अनजान रहनेवाला आदमी ये भी नहीं जानता कि पाकिस्तान में क्या हो रहा है। इन दिनों जरूर नेताओं को थोड़ा गली-मुहल्ले घूमते देखता हूं। ये जरूर जानता हूं कि चुनाव आ गया है। शायद अगले महीने होगा। मैं अपनी कम हो गयी बचत के बारे में पूछना चाहता हूं। गाड़ियों के बढ़ गये किराये के बारे में जानना चाहता हूं। जानना चाहता हूं कि रसोई गैस की कीमत कब कम होगी। मैं जिंदगी भर के बचाये गये रुपये से कैसे एक छोटा अपना घर बनाऊंगा। ऊंची उठती अट्टालिकाओं में मैं अपने सपनों की दुनिया खोजता हूं। रोज मजदूरी कर लौटता हूं, लेकिन सुबह फिर उसी जद्दोजहद में लौटना पड़ता है। मैं ये भी नहीं जानता कि परमाणु संधि क्या होता है या क्या है। मैं टूटी सड़कों पर साइकिल पर जोर से पैडल मार घूमता हूं। डगर-डगर भटक कर दो जून की कमाई करता हूं। हर दिन नयी आशा के साथ जीता हूं। मेरी दुनिया समस्याओं से घिरी हुई है। क्या कोई बतायेगा, मेरी ये समस्याएं कब दूर होंगी। चुनाव आ रहा है, ये जानता हूं। लेकिन नेताओं से पूछना चाहता हूं, ऊपर लिखे अपने सवालों के बारे में। मैं एक आम आदमी हूं।
(एक आदमी के मन में शायद ये द्वंद्व ही आते और उठते होंगे)
Monday, March 23, 2009
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2 comments:
एक आम आदमी की सच्ची तस्वीर पेश करती, आपकी यह रचना पसन्द आयी। कहते हैं कि-
किसी को पेट भरने को मयस्सर भी नहीं रोटी।
बहुत से लोग खा-खाकर यहाँ बीमार होते हैं।।
जिन्हें रातों में बिस्तर के कभी दर्शन नहीं होते।
बिछाकर धूप का टुकड़ा ओढ़ अखबार सोते हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बेहतर हो अगर हम अपने सवालों के जवाब खुद खोजें। महात्मा बुद्ध ने भी कहा है अप्प दीपो भव। अपना दीपक खुद बनो।
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