इस बार की राजनीति काफी कुछ कह दे रही है। लालू प्रसाद प्रहार करते हुए कहते हैं-हमरी बिल्ली हम्मी से म्याऊं। यानी कल तक जो उनके शेर जैसे व्यक्तित्व के आगे दुम हिलाते थे, वे उनसे दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं। इंडियन पालिटिक्स की अंतहीन गाथा लिखने की तैयारी की जा चुकी है। चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, लेकिन कोई भी दल अब किसी पर हावी होता नजर नहीं आ रहा है। ये पहला चुनाव होगा, जहां कोई लहर नहीं है। न कोई दल पूरी तरह से जीत का दावा कर रहा है और न ही जीत के लिए आश्वस्त है। हर दल और हर नेता बिछी बिसात को किस्मत के सहारे चल रहा है। भारतीय राजनीति में राजनेता पहली बार इतने हताश नजर आ रहे हैं कि विकल्प के तौर पर चौथा तो क्या पांचवां मोरचा बनाने तक की जुगत लगा सकते हैं। भारतीय नेताओं ने कभी भी अपनी खामियों के ऊपर नजर नहीं डाली। पहले के चुनावों में एक करंट होता था। एक उल्लास नजर आता है। इतिहास, विचारधारा, द्वंद्व और इतिहास को समेट कर चलने की बात होती थी। लेकिन इस बार का चुनाव शायद एकदम ठंडा नजर आ रहा है। भले ही मीडिया और अखबार कितने भी पन्ने और स्क्रीन को चुनावी नारों के सतरंगी बहारों से रंग लें,ठंडापन नजर आ रहा है, उसे नकारा नहीं जा सकता है। सवाल ये इसलिए भी है कि वरुण गांधी को एपिसोड अचानक उठे आग के शोले की तरह ठंडा होता नजर आ रहा है। ऐसा क्यों है? क्यों हिन्दुत्व का एजेंडा कारगर नहीं हो पा रहा है? साथ ही कांग्रेस का जय हो ही क्यों नहीं कारगर हो पाया है। लेफ्ट का पॉलिटिक्स ब्लेम गेम का होकर रह गया है। इसे भी सब जानते हैं। जब तक सरकार में रहे, सरकार की हालत खराब रही। आखिर इस देश की जनता किस विश्वास के साथ नेताओं के साथ हमकदम बनकर आगे बढ़े।
हम लोकतंत्र के हमेशा हिमायती रहे हैं। और हिमायती रहे हैं नेताओं के। जिनके सहारे हम अपने इस लोकतंत्र को आगे बढ़ा सकते हैं। लेकिन उसमें अगर ऐसा ठंडापन जनता में नजर आ रहा है, तो क्या किया जाये। मीडिया के लोग कितना भी लोकतंत्र और नेताओं के जुमलों को लेकर बहस कर लें। लेकिन हमारे वर्तमान नेताओं में वह पैनापन नहीं रहा। कल तक नजरें तक नहीं मिलानेवाले लालू और रामविलास जब साथ मिलकर चलने की बात कर रहे हैं, तो जनता जनार्दन बेचारी भी असमंजस की स्थिति में आ गयी है। क्योंकि कल ये राजनीतिक किस पलटी पलट जायेंगे, कौन जानता है?ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अंदाजा लगाते-लगाते चुनाव के दिन भी नजदीक आ रहे हैं। ऐसे में कुछ नतीजा नहीं निकल रहा। क्या फिर वही खिचड़ी सरकार नसीब होगी? या कोई पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आयेगा। ये न तो हम जानते हैं और न नेता। क्या आप जानते हैं?
Wednesday, April 8, 2009
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4 comments:
बहुत खूब। हे हैं कि-
मजबूरियाँ जम्हूरियत की देखो।
ताज को कातिल के सर पे रख दिया।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
अभी के हालात में पूर्ण बहुमत के साथ कोई आ सकता है ?
सच कहा आपने -
'मीडिया के लोग कितना भी लोकतंत्र और नेताओं के जुमलों को लेकर बहस कर लें। लेकिन हमारे वर्तमान नेताओं में वह पैनापन नहीं रहा।'
इस चुनाव में एण्ट्रटेनमेण्ट फैक्टर भी गायब सा लग रहा है। लालूजी भी पूरे रंग में नजर नहीं आ रहे।
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