Saturday, April 11, 2009

संगठन व्यक्ति से होता है, न कि समय से

भाजपा के नरेंद्र मोदी गुजरात के विकास को लेकर उदाहरण हो गये हैं। नैनो को बंगाल से खींचकर गुजरात ले गये, वाहवाही मिली, लेकिन लगता है नरेंद्र मोदी की सफलता ने उन पर अहंकार की चादर डाल दी है। उन्होंने क्या कहा, उन्होंने कह डाला कि कांग्रेस १२५ साल की बुढ़िया है और भाजपा ३० साल का जवान।

श्री मोदी को ये कहने से पहले ये जान लेना होगा कि संगठन या विचारधारा बूढ़े नहीं होते हैं। बूढ़ी होती है हमारी मानसिकता, जो कि इस विचारधारा को समय के साथ नहीं ढालते हैं। आज नरेंद्र मोदी सफलता की ऊंचाइयों पर हैं। ये एक गर्व की बात है,लेकिन उन्हें ये हक नहीं बनता कि वे कांग्रेस जैसे संगठन को बूढ़िया कहें। कांग्रेस और भाजपा दोनों संगठन ही इस देश की शान हैं। जरूरत दोनों ही संगठनों के मजबूत होकर खड़े होने की है। उसमें अगर कांग्रेस को पूरी तरह से विदा करने जैसी बात होती है, तो ये एक गैर-जिम्मेदाराना बयान कहलायेगा। क्या किसी पार्टी या संगठन की पूरी तरह से विदाई संभव है। ऐसा नहीं हो सकता है? कम से कम भारत में तो नहीं।

मोदी को याद रखना चाहिए कि प्रियंका और राहुल भी कांग्रेस में ही हैं। वे युवा हैं और उनमें दूर देखने की क्षमता है। सबसे ज्यादा युवाओं की फौज कांग्रेस के पास ही है। क्या मोदी बतायेंगे कि उनके नेताओं की उम्र कितनी है। संगठन व्यक्ति से होता है, न कि समय के हिसाब से। अगर आक्रामक तेवर से कोई पार्टी जवान लगने लगे, तो सबसे ज्यादा जवान तो वैसी पार्टियां या दल होंगे, जो सबसे उग्र भाषा का प्रयोग करते हैं।

श्री मोदी एक सफल सीएम के साथ सफलतम व्यक्ति के रूप में चर्चित हैं। उन्हें बतौर उदाहरण भाजपा पेश करती है और दूसरे दल एवं लोग भी उनका प्रशंसा करते हैं। ऐसे में बह रहे चुनावी बयार में नरेंद्र मोदी जैसी शख्सियत से मर्यादित और बेहतर जज्बेवाले भाषण की उम्मीद सबको है। नीतिगत फैसलों पर श्री मोदी अगर बहस करते हुए बात आगे बढ़ाये, तो अच्छा लगेगा।

7 comments:

निर्मला कपिला said...

bilkul sahi kaha aapne lagata hai ki modi ke pas ab kahne ke liye kuchh bacha nahi hai ya vo apni mariyada bhool gaye hain

आशीष कुमार 'अंशु' said...

Sach-sach likhaa aapane ...

दिनेशराय द्विवेदी said...

संगठन व्यक्ति से नहीं व्यक्तियों से होता है। किसी भी व्यक्ति के पीछे चल रहे अनुगामी लोग उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। व्यक्तित्व का निर्माण भी होता है और उस का विघटन भी। जो जनता की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के पथ पर चलेगा उस के व्यक्तित्व का निर्माण होता जाएगा और जो जनता पर अपनी महत्वाकांक्षाएँ लादेगा उस के व्यक्तित्व का विघटन।

Unknown said...

बिलकुल सही कहा आपने अथवा सोनिया जी किसी एंगल से नेता नहीं बन पाती | रही बात कांग्रेस की तो ले देखर आपको प्रियंका और राहुल ही नज़र आये :) बाकी नहीं | राहुल और प्रियंका के खुद में इतना दम नहीं है जितना की हम उनमे दम देखना चाहते हैं |

prabhat gopal said...

aapke comments protsahit karte hai. dhanyawad. aap logo ka margdarshan milta rahe.

Anonymous said...

क्या जवान-बूढा लगा रखे हैं सब .योग्य और अनुभवी की बात तो कोई करता ही नहीं .बिन भेजे के पें पें करने वाले आँख मुद कर कह देते है कि देश का नेतृत्व खाली युवा के हाथों में आना चाहिए .देख तो लिया हमने युवा वरुण के कटारी बयान से भारत में बवाल मचा तो राहुल के बंगलादेशी उपलब्धि वाले बयान से पाकिस्तान में .और १९८४ में इंदिरा की हत्या के बाद जो भी निर्दोष मरे तो उसपर युवा राजीव गाँधी के मुह से निकला "बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है" वाला बयान .निश्चित व्यक्ति हो या संगठन बूढों के पास तजुर्बा होता है और जवान के पास उर्जा .पर जवान नादान हो सकते हैं और बूढे बीमार इन दोनों टाइप से देश को सतर्क चाहिए .
रही बात विपक्ष की तो लोकतंत्र में इसकी भूमिका बड़ी अहम है .सत्तापक्ष की निरंकुशता,अकुशलता और अकर्मण्यता पर लगाम लगाने के लिए रचनात्मक और जिम्मेदार विपक्ष का होना बहुत जरूरी है .पर कई दशकों से विपक्ष का धर्म ,चाहे वो कांग्रेस हो या बीजेपी, देशहित के मुद्दों पर भी एक दुसरे की टांग खीचना और लंगडी मारना .
शीला दिक्षित जब विपक्ष में थीं तो उनके मुहँ से कई बार सुना था मैंने की विपक्ष का काम ही निंदा करना होता है .माने सत्ता पक्ष जनहित का सुकार्य करे तो भी निंदा !वाह !कमाल !,जय हो बुढिया माता !!!!!!!!!

Pramendra Pratap Singh said...

आप ब्‍लाग पर आये बहुत अच्‍छा लगा, मै आपके लेख से सहमत तो हूँ कि पूर्ण तरीके से नही। नरेन्‍द्र मोदी की छोटी सी बात को इतना तूल देना ठीक नही, जिसका मकसद व्‍यंग हो।

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