Wednesday, April 15, 2009

हाथ-पांव लगातार फूल रहे थे उनके।

हमारे एक मित्र के परिचित की चुनाव कार्यों में ड्यूटी लगी है। ड्यूटी लगी भी, तो घोर उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में। हाथ-पांव लगातार फूल रहे थे उनके। ऐसी हालत झारखंड में हजारों सरकारी कर्मियों की है। नक्सलियों ने अपनी धमक से दहशत पैदा करने का काम किया है। कभी बंद, तो कभी हिंसा से उन्होंने लोगों के जेहन में अनजाना डर बैठा दिया है। कोई भी व्यक्ति नक्सल प्रभावित इलाकों में ड्यूटी नहीं चाहता। झारखंड के दस से ज्यादा जिले नक्सल प्रभावित हैं। वैसे में निहत्थे सरकारी कर्मियों की हालत खराब रहती है। कल मतदान होने को है। दिनभर मतदान की प्रक्रिया चलेगी। देखने की बात होगी कि प्रशासन कैसे शांतिपूर्वक चुनाव संपन्न कराता है। इस बार की चुनावी बहस में नक्सल समस्या को हाशिये पर धकेल दिया गया। इसे नक्सलियों का भय कहें या डिगा आत्मविश्वास, इस समस्या को लेकर कमतर चर्चा हुई। अब दो दिन से झारखंड-बिहार में नक्सली हिंसा से प्रशासन परेशान है। उम्मीद करता हूं कि लोकतंत्र का ये महापर्व बिना किसी झंझट के संपन्न हो।

6 comments:

Anonymous said...

भैया सरकारी मतदानकर्मिओं को Z+ श्रेणी की सुरक्षा तो मिलनी ही चाहिए .इधर नक्सलियों का आधुनिकीकरण पुलिस से भी ज्यादा तेजी से हो रहा है .अब तो ये देशद्रोही रॉकेट लौन्चर का भी इस्तेमाल सैनिकों पर करने लगे हैं ,टनों टन विस्फोटक जुगाड़ ले रहे हैं और ये सब विदेशी सहयोग के बिना कैसे संभव है ?
भारत भविष्य निर्माता नेता लोगन की जय हो .जय हो

गोपाल जी हम सिस्टम के स्वतः ठीक होने का इन्तजार करें .अभी यहाँ पाकिस्तान जैसी स्थिति थोड़े ही है जब होगा तो देखा जायेगा .वैसे भी चिंता क्यों करना एकदम बिंदास रहने का क्योंकि अभी ये आतंकवाद की समस्या अपने पौधरूप में ही तो है जब विशालकाय वृक्ष हो जाए तब सोचेंगे. और तो और इस बार चुनावों में पहले से भी ज्यादा देशभक्त और कर्त्तव्यनिष्ठ नेता शरीक हो रहे हैं . इन महानायकों से हमे बड़ी जबरदस्त उम्मीदें हैं.

परमजीत सिहँ बाली said...

सरकारी तंत्र मे अभी सुधार की बहुत जरूरत है।ऐसि सूरत मे कर्मचारीयों के लिए कड़े प्रबंध करने चाहिए।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

नेता फलते रहें, बाकी देश जाये चूल्हे में.

दिनेशराय द्विवेदी said...

असल में जिसे नक्सल समस्या कहा जा रहा है वह असमान विकास की समस्या है। आदिवासियों से उन के पारंपरिक जीवन यापन के साधन छीन लिए गए हैं और बदले में मिली है भूख और बेरोजगारी। आप भूख, बेरोजगारी हटाइए, उन्हें सम्मान से जीने का अवसर दें, तो यह समस्या हल हो सकती है। पर हम हैं कि इसे आयातित बताते हैं। जिन से जंगल छिन गया अब वे हथियारों के बल पर आप को वहाँ आने से रोकते हैं।

प्रभात गोपाल झा said...

thanks for good comments

Science Bloggers Association said...

चुनाव डयूटी का नाम सुनकर बडे बडों के हाथ पांव फूल जाते हैं।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?

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