पत्रकारिता की दुनिया में रहते हुए एक चीज जाना है कि छपे हुए शब्दों पलट-पलट कर वार करने की क्षमता रखते हैं। वैसे में बिहार और बिहारियों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित लेखों को पढ़कर दो चीजों पर गौर करने की जरूरत होती है। पहली कि काल क्रम में बिहारी शब्द दूसरे राज्यों में हीन दृष्टि से देखने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। और दूसरी कि बिहार के बैड इमेज की मार्केटिंग खुद बिहार के लोगों ने ही कुछ ज्यादा ही कर दी है। जिसके कारण उन्हें खुद अब पछताना पड़ रहा है।
बिहार को बनते-बिगड़ते देखा और महसूस किया। अब जब खुद नीतीश बिहारी होने के सवाल को गर्व से जोड़ने की बात करते हैं, तो मीडिया की दुनिया के पालनहारों को भी ये देखना होगा कि प्रांतीयता या क्षेत्रवाद की आंधी को शब्दों के बहाव से और न तेज करें। इसके लिए जरूरी है कि मीडिया के जागरूक लोग खुद आत्ममंथन करें कि कौन, कहां गलत है। हो सकता है कि बिहारी जैसे शब्द का प्रयोग दूसरे सेंस में किया जाता हो, लेकिन बिहार के प्रति कायम नकारात्मकता के बोध को खत्म करना भी उतना ही जरूरी है।
ये सिर्फ बात करने से दूर नहीं होगा, बल्कि इसके लिए खुद कुछ नियम बनाने होंगे। जैसे कि मैंने पहले कहा था कि बिहार के लोगों ने खुद बिहार के बैड इमेज की ज्यादा मार्केटिंग की है, तो इसके पीछे कुछ कारण हैं। पहला ये कि नीतीश के चुने जाने से पहले के २० सालों जो दौर आया, उसमें पलायन, पिछड़ापन और बेहाल बिहार की त्रासद तस्वीर दुनिया के सामने उभरी। अव्यवस्था का बिहार मानक बन गया। एक आम बिहारी दूसरे राज्यों में नौकरी के लिए भटकता फिरता रहा।
लेकिन उसी बिहार के लोगों ने नीतीश को बहुमत देकर और लोकसभा चुनाव में जात-पात से ऊपर उठकर लोकसभा में सीटों का उपहार देकर परिवर्तन के बह रहे बयार से परिचित करवाया। पत्रकारिता हमेशा वर्तमान संदर्भ में की जानेवाली चीज है। अतीत को कुरेद कर सुनहरे भविष्य का निर्माण कभी नहीं किया जा सकता है। वैसे में अगर कोई बड़ा पत्रकार या व्यक्तित्व नेगेटिव सेंस में बिहार या किसी समाज, देश या फिर व्यवस्था का उदाहरण स्वरूप नाम लेता है, तो वह कई सवाल खड़े करती है। सवाल ये कि वर्तमान संदर्भ से कटा वह व्यक्ति क्या अभी तक अतीत की दुनिया में ही जी रहा है। क्या उसे वर्तमान दौर में हो रहे राजनीतिक परिवर्तन से कोई सरोकार नहीं है या सिर्फ पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर अहं की तुष्टि के लिए ऐसे देश और समाज को नुकसान पहुंचानेवाले कार्य किए जा रहे हैं।
बिहार में हो रहे परिवर्तन की खबर को दुनिया के सामने लाइए। सबसे बड़ा परिवर्तन राजनीतिक परिवर्तन है। वहां के लोगों ने परिपक्व चयन के जरिये ये संदेश दे दिया है कि हमें अब गिरी नजरों से मत तौलो। हममें भी हौसला है बदलाव लाने का। पड़ोसी राज्यों झारखंड, बंगाल और उड़ीसा में जो सामाजिक असंतोष की तस्वीर उभरती है, वह बिहार में देखने को नहीं मिल रही। दो सालों में सड़कों का जाल बिछा है। नरेगा की स्थिति भी कुछ हद तक बेहतर है। हम अपने इस लेख में भी किसी राज्य, समुदाय या व्यक्ति के खिलाफ किसी तर्क या शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे।
एक भारत, एक देश, एक सिद्धांत की बात करनेवालों की फौज खड़ी हो ये जरूरी है। बिहारी होने के पर्याय बदल रहे हैं। बिहारी होने का मतलब अब बिना हारा राही है। जो हर चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है। इसलिए बिहारी या किसी समुदाय, राज्य या समाज के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्तियों से नम्र निवेदन है कि वे सकारात्मकता की बात करें और देश को एक होने की बात करें।
Saturday, June 20, 2009
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6 comments:
बिहार में हो रहे परिवर्तन की खबर को दुनिया के सामने लाइए। सबसे बड़ा परिवर्तन राजनीतिक परिवर्तन है। वहां के लोगों ने परिपक्व चयन के जरिये ये संदेश दे दिया है कि हमें अब गिरी नजरों से मत तौलो। हममें भी हौसला है बदलाव लाने का ।
बहुत सही लिखा है ।
बहुत बढ़िया आलेख. ईमेज बदलने में वक्त जरुर लग सकता है किन्तु बदल कर रहेगी. हर व्यक्ति को पूरे देश को एक नजर में रख कर इस विभाजन करती रेखा को मिटाना होगा. इसी में सबका हित है.
बहुत अच्छी जानकारी दी आपने. बिहार के बारे में अभी भी पढ़े लिखे लोग इक्का दुक्का क्राईम निउज पढ़ कर धरना बना ले रहे हैं. बिहार ही नहीं देश के ऐसे बहुत सारे प्रदेशों के बारे में लोगो को कम जानकारी होती है. बिहार के बारे में जानकारी और वहां की विशेषताओं को लोगो के सामने लाना जरुरी है. ऐसे ही जानकारी समय समय पर देते रहिये.
बिलकुल सहमत हूँ आपकी बातों से।
राजनीति के अलावा और क्या क्या परिवर्तन आये हैं कृप्या हमें भी परिचय करवाईये। जिससे वाकई हमारे समाज की सोचने की दिशा सही हो सके।
BIHAR MAIN HO RAHE PARIWARTAN KO DEKH KE LAGTA HAI KI AAB BIHAR JAROOR BADLEGA
THANKS
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