की-बोर्ड पर थिरकती उंगलियों से
रचना चाहता हूं इतिहास
लिखना चाहता हूं एक ऐसी जानदार पोस्ट
जिस पर हो टिप्पणियों की भरमार
लेकिन जिंदगी हर बार कुछ ऐसा खेल बनाती है
कि हर पोस्ट बन जाता है बेजान
क्योंकि उसमें वो रस नहीं होता
वो जान नहीं होती
जो चाहिए एक पोस्ट, एक सुंदर कृति में
उसे अमर बनाने के लिए
हर सुबह से रात तक
कोशिश होती है कि एक नया इतिहास रचूं
भले ही वह ब्लाग पर क्यों न हो
लेकिन हो नहीं पाता
क्योंकि नल में पानी नहीं आना
बिजली का बार-बार चला जाना
तोड़ देता है मेरा कन्संट्रेशन
रह-रह कर जद्दोजहद के साथ
फिर फोकस करता हूं खुद को
लेकिन पाता हूं कि इबादत को उठे हाथों में बंधे हैं पत्थर
तथाकथित जिम्मेदारियों के
जो खुदा की इबादत भी नहीं करने देती
रगड़-रगड़ कर, हौले-हौले
बढ़ते मेरे कदम
एक हौसला भर देते हैं कि
लगे रहो
अपनी इस जंग में
एक जानदार पोस्ट के इंतजार में
वो सुबह जरूर आएगी
जिसकी उम्मीदों के लौ जलाए हम बैठे हैं
छोटी बेटी की तोतली आवाज
और उसका रह-रह कर मुस्कुराना
जगाती है आशा
भगाती है निराशा
हौले से छूकर जाती हवा की परत
हौसला दे जाती है
जिंदा रहने का करा जाती है अहसास
उसी अहसास के तले
हम खुद में जान डाले
फिर से जानदार पोस्ट के इंतजार में
बैठे हैं लगातार
की बोर्ड पर थिरकती उंगलियों से
रचना चाहता हूं इतिहास
Wednesday, July 1, 2009
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2 comments:
रच तो डाला..अब और क्या..की बोर्ड की जान ही ले लोगे क्या?
बहुत ही अच्छी रचना. बधाई स्वीकारें.
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