सच का सामना करने के लिए कलेजा चाहिए। समाज और व्यवस्था में तोड़नेवाले सच का दुनिया में कभी स्वागत नहीं हुआ। एक ऐसा सच, जो भविष्य बनाने की बातें नहीं करता है, बल्कि निजी जिंदगी को कुरेद-कुरेद कर लोगों के सामने परोसता है। सामने बैठे होते हैं, माता, पिता, बेटा-बेटी। संबंधों का टूटना निश्चित लगता है, क्योंकि निजी संबंधों को तोड़नेवाले सवाल रहते हैं इसमें। सामने बैठनेवाला किरदार भी पैसे के मोह में ही बैठता है।
आदमी का सबसे बड़ा सच क्या है, आदमी का सबसे बड़ा सच वर्तमान है। भविष्य का हमें ग्यान नहीं होता। हम आज अपने भूतकाल की दीवारों के सहारे ही खड़े होते हैं। उस भूतकाल में हमने जो सुकर्म या कुकर्म किए होते हैं, उनसे दुनिया को सार्वजनिक मंच के जरिए इस कार्यक्रम के माध्यम से परिचय कराते जाते हैं।
कहा जाता है कि सत्य वचन बोलिये, लेकिन अप्रिय सत्य न बोलिये। दूसरी ओर यहां तो गंगा ही उलटी बहती दिखती है। यहां टप-टप आंसू गिरते हैं। आंखों में जलन का सैलाब नजर आता है। इतने नजदीकी संबंधों का ऐसा तमाशा। लानत है हमें हमारे व्यावसायिक हो गयी मानसिकता पर। अब तक सिर्फ ये ही बच गया था। शादी का फार्मूला आजमा लिया और अब ये सच का फार्मला इजाद हुआ है। मैं कहता हूं कि ईश्वर के दर्शन करा दे, ऐसे सत्य को दिखाओ। सच वही है, जो दुनिया को बदल दे। दुनिया के रंग-ढंग में परिवर्तन कर दे। ये नहीं कि एक शब्द संबंधों को तोड़कर बिखेर दे।
टीवीवालों ने लगता है कि पूरे संस्कार को गढ़ने का ठेका ले रखा है। मैं एक अच्छा परिवार चाहता हूं। एक ऐसा परिवार, जिसमें मेरे भूत या भविष्य से कोई पूर्वाग्रह नहीं हो। क्या रिश्तों का तमाशा सिर्फ एक करोड़ रुपए के लिए क्या जाना तारीफ के लायक है? ये बिखरते सामाजिक परिवेश का एक ऐसा आईना है, जो हमें डराता है कि ऐसे सच कल को हमारे घर के आसपास भी पूछे जा सकते हैं। क्योंकि ये उसी डिस्को संस्कृति का प्रतीक है, जो आया तो धीरे से था, लेकिन आज ऊपर से नीचे तक जिसके नकारात्मक प्रभाव अवश्य देखने को मिल रहे हैं।
मुझे ऐसे सच स्वीकार नहीं हैं, जो समाज की आत्मा को बिखेर कर रख दे। मेरी ताकत छीन ले। और संबंधों की मिठास में इतना कड़वाहट भर दे कि हलक के नीचे न उतरे। देश, समाज और खासकर व्यक्तिगत द्वंद्व से ऊपर उठकर ईमानदारीपूर्वक जो संबंध हैं, उनकी इज्जत करना जरूरी है। ये जाहिर है कि जो आज है, वह कल नहीं रहेगा। इसलिए समय के इस मोती के पहचानना जरूरी है। एक करोड़ क्या, दस खरब के लिए भी ऐसा तमाशा स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। पैसा जिंदगी में सबकुछ नहीं होता। मौत के बाद नोटों का बंडल चादर नहीं बनता, ये जानना जरूरी है।
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1 comment:
खुद तो देख लेते हैं, सुन लेते हैं, बाकियों के लिये मास्किंग और बीप, सबको बेवकूफ समझते हैं और अपने को स्वर्ग से आया हुआ, यही इनकी सच्चाई है.
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