Wednesday, August 26, 2009

ब्लाग जगत बिना पैसे के कुश्ती लड़ने जैसा हो गया है

आइपीएल को लेकर ऐसी जद्दोजहद जारी रहती है फिल्मी सितारों में कि मन तड़पने लगता है। एक करोड़, दो करोड़, तीन करोड़ यानी पैसा पैसे को बनाता है। क्रिकेट से जुदा होकर अगर बात ब्लागिंग की की जाये, तो इसे लेकर थोड़ी कुढ़न होती है। इतना टिपियाने के बाद भी कुछ हासिल नहीं होता। बस कमेंट और हिट्स की दरकार लिये हम लोग बैठे रहते हैं। कल्पना कीजिये, कल को ब्लागिंग की दुनिया में ब्लागों की बोली लगने लगे, तो फिरकैसा सीन उभरे? ये भी देखना बड़ा दिलचस्प होगा।

उसमें भी किसका ब्लाग बिकेगा। ये तो हम जानते हैं कि हमारा ब्लाग नहीं बिकनेवाला, क्योंकि इसमें कुछ ऐसा-वैसा होता नहीं है। जब मन में जो आता है, टिपिया देते हैं। लेकिन उन क्लासिक ब्लागरों के बारे में सोचिये, जो सितारे का दर्जा पा चुके हैं। यूएफओ तक से जिनका कनेक्शन है। जब जहां चाहते हैं, चले जाते हैं। इंटरनेशनल लेवल पर छाये हुए हैं।

ब्लाग जगत बिना पैसे के कुश्ती लड़ने जैसा हो गया है। कहीं से कोई कनेक्शन लग जाये, तो जिंदगी सुधर जाये। ऐसा कब होगा, पता नहीं। लेकिन इसके लिए कोई जुगत भिड़ा रहा है या नहीं, ये पता नहीं चल रहा। बड़ा कन्फ्यूजन है। हे महान ब्लागरों कुछ तो जुगत भिड़ाओ, कोई तो कनेक्शन लगाओ कि ये मेहनत बेकार जाये। आत्मसंतुष्टि के नाम पर कब तक नैया खेते रहेंगे। गणपति जी आप सुन रहे हैं ... कुछ तो कीजिये़..

8 comments:

श्यामल सुमन said...

सच तो यह है प्रभात गोपाल जी कि शीर्षक के अतरिक्त कुछ भी पढ़ा नहीं (सारे शब्द एक बिशिष्ट चित्र की तरह लग रहे हैं) जा रहा है। फिर भी शीर्षक से लग रहा है कि ब्लागजगत में चल रहे अनेक प्रकार के गरमागरम गतिविधियों की ही चर्चा होगी।

Anita said...

आप और हम भी शामिल है!!

Udan Tashtari said...

धीरे धीरे रे मना
धीरे सब कुछ होय!!!


-धीरज रखो, फल मिलेगा. अपने स्तर पर सब लगे हैं प्रयास में..पेड़ बोया है, फल सुनिश्चित है..बस, सही समय का इन्तजार करो.

अभिषेक मिश्र said...

Suman ji ki baton par dhyan dein.

विनीत कुमार said...

भाई,हम तो बिकने के लिए नहीं सीखने के लिए ब्लॉगिया रहे हैं। वैसे अगर आप इस दिशा में सोच रहे हैं तो थोड़ा पेसेंस रखिए...कामयाब होंगे।

Unknown said...

बात आपकी बिल्कुल सही है। मेहनत का फल तो मिलना ही चाहिये।

वैसे गूगल प्रयास में लगा हुआ है, देखें कब तक सफलता मिलती है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

हाँ ये बात तो है कि जब कुश्ती ही लडनी है तो कम से कम पैसे तो मिलें। अगर कहीं चोट वोट लग गई तो कम से कम बन्दा उन पैसों से इलाज तो करा ही सकता है..:)

स्वप्न मञ्जूषा said...

अरे बाप रे !!!
इतना सारा बोक्सिंग ग्लब्स ??????
हमको कुश्ती नहीं जानते हैं ...
हमको सिर्फ खो-खो आता है....उसी का लाइन है का.....

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