शशि थरूर को टि्वटर पर डाले गये शब्दों ने आफत में डाल दिया। अब सफाई देते फिर रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग या ब्लाग लोकप्रियता का अच्छा माध्यम तो है, लेकिन ये आफत में डालनेवाला भी हो सकता है। पिछली पोस्ट में एक मित्र ने सहज भाषा में कहा कि खासकर हिंदी ब्लागिंग टाइम पास की ओर रुख कर रहा है। कल के पढ़े गये टॉप पोस्टों पर गौर करें, तो ये जाहिर हो जायेगा कि हिन्दी ब्लाग जगत में तीन चीजें मुख्य हैं-
खुद का गुणगान
दूसरों को नीचा समझाने का प्रयास
टांग खींचाई
और भी काफी कुछ ऐसा, जो कि सब जानते हैं।
कहते हैं कि किसी चीज का विस्तार देने से होता है। आप जितना देंगे, उतना पायेंगे। ये एक बिजनेस की तरह है। आपकी साख आपको बाजार में खड़ा करती है। वैसे ही यहां भी हम या आप जितना खुद से निकाल कर इस आभासी संसार को देंगे, उतना हमें लौटकर मिलेगा। यहां न कोई दोस्त होता है और न मित्र।
हम यहां बिना किसी बहस के महाजाल के सुरेश जी का जिक्र करना चाहेंगे। सुरेश जी, एक बेहतर लेखक के तौर पर जाने जाते हैं। लेकिन सबसे बड़ा उनमें जो गुण हमने पाया, वह ये है कि वे बहस में भाग लेते हैं। विषय को आगे बढ़ाते हैं। वैसे में उनकी लोकप्रियता कोई एक दिन में नहीं बनी। वैसे ही समीर लाल जी की किसी भी टिप्पणी में आप एक सहृदय और विचारवान आदमी की छाप देख सकते हैं। एक साथ इतने ब्लागों में जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना कोई हंसी-खेल नहीं। हम तो ऐसा कर नहीं पाते। जो रात का समय थोड़ा मिलता है, उसमें पढ़ और लिख डालते हैं।
जो लोकप्रिय हैं और जो लोगों के मन में बसे हुए हैं, उन्होंने बिना किसी चाह के प्रोत्साहन से भरी टिप्पणियों से नये और पुराने ब्लागरों का मार्गदर्शन किया है और कर रहे हैं। कहने का मतलब ये है कि उनकी बातें सहज प्रेरणा देनेवाली होती हैं। किसी भी व्यक्ति का ब्लाग उसके व्यक्तित्व का आईना होता है। वैसे ही किसी की टिप्पणी किसी के प्रति आदर या निरादर का भाव जगाती है।
संघर्ष से भरे जीवन में गुलाब की पंखुड़ियों की भांति अगर दो मीठे बोल देखने को मिल जायें, तो मन बाग-बाग हो जाता है। कोयल की कुक के समान स्वर खुद ब खुद कानों में बजने लगते हैं। विचारवान पुरुष कभी दूसरों के आगे तन के खड़े नहीं होते। वे बस विनम्रता से मार्गदर्शक की भूमिका में रहते हैं। यही होना भी चाहिए।
जो बुजुर्ग हैं, जो श्रेष्ठ हैं, वे अपने ग्यान के प्रकाश से ब्लाग जगत को सुनहरी आभा से भर दें। यही अपेक्षा है। वैसे भी अंधेरा भगाने के लिए एक ही चिराग काफी होता है।
खुद का गुणगान
दूसरों को नीचा समझाने का प्रयास
टांग खींचाई
और भी काफी कुछ ऐसा, जो कि सब जानते हैं।
कहते हैं कि किसी चीज का विस्तार देने से होता है। आप जितना देंगे, उतना पायेंगे। ये एक बिजनेस की तरह है। आपकी साख आपको बाजार में खड़ा करती है। वैसे ही यहां भी हम या आप जितना खुद से निकाल कर इस आभासी संसार को देंगे, उतना हमें लौटकर मिलेगा। यहां न कोई दोस्त होता है और न मित्र।
हम यहां बिना किसी बहस के महाजाल के सुरेश जी का जिक्र करना चाहेंगे। सुरेश जी, एक बेहतर लेखक के तौर पर जाने जाते हैं। लेकिन सबसे बड़ा उनमें जो गुण हमने पाया, वह ये है कि वे बहस में भाग लेते हैं। विषय को आगे बढ़ाते हैं। वैसे में उनकी लोकप्रियता कोई एक दिन में नहीं बनी। वैसे ही समीर लाल जी की किसी भी टिप्पणी में आप एक सहृदय और विचारवान आदमी की छाप देख सकते हैं। एक साथ इतने ब्लागों में जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना कोई हंसी-खेल नहीं। हम तो ऐसा कर नहीं पाते। जो रात का समय थोड़ा मिलता है, उसमें पढ़ और लिख डालते हैं।
जो लोकप्रिय हैं और जो लोगों के मन में बसे हुए हैं, उन्होंने बिना किसी चाह के प्रोत्साहन से भरी टिप्पणियों से नये और पुराने ब्लागरों का मार्गदर्शन किया है और कर रहे हैं। कहने का मतलब ये है कि उनकी बातें सहज प्रेरणा देनेवाली होती हैं। किसी भी व्यक्ति का ब्लाग उसके व्यक्तित्व का आईना होता है। वैसे ही किसी की टिप्पणी किसी के प्रति आदर या निरादर का भाव जगाती है।
संघर्ष से भरे जीवन में गुलाब की पंखुड़ियों की भांति अगर दो मीठे बोल देखने को मिल जायें, तो मन बाग-बाग हो जाता है। कोयल की कुक के समान स्वर खुद ब खुद कानों में बजने लगते हैं। विचारवान पुरुष कभी दूसरों के आगे तन के खड़े नहीं होते। वे बस विनम्रता से मार्गदर्शक की भूमिका में रहते हैं। यही होना भी चाहिए।
जो बुजुर्ग हैं, जो श्रेष्ठ हैं, वे अपने ग्यान के प्रकाश से ब्लाग जगत को सुनहरी आभा से भर दें। यही अपेक्षा है। वैसे भी अंधेरा भगाने के लिए एक ही चिराग काफी होता है।
5 comments:
प्रभात जी सर्वप्रथम इस बात के लिये आपको साधुवाद कि आपने हिन्दी ब्लॉगिंग के भविष्य को लेकर यहाँ चिंता व्यक्त की है । इस चिंता मे आपके साथ मुझ जैसे अन्य लोग भी शामिल हैं । मै मूलत: प्रिंट माध्यम से हूँ और विगत 4-5 माह से इस माध्यम से जुड़ा हूँ । प्रिंट माध्यम की कुछ बुराइयाँ तो खैर यहाँ भी है लेकिन यहाँ लोकप्रिय हिने के रोग के साथ व्यग्रता का रोग भी है । बहुत से लेखक अपने प्रकाशन पर त्वरित प्रतिक्रिया चाहते हैं और इस वज़ह से वे चाहे जैसा लिखते चले जाते हैं । पत्रिकाओं में तो इस बात का विभाजन है कि यह साहित्यिक पत्रिका है यह घरेलू पत्रिका है आदि लेकिन यहाँ ऐसा विभाजन नही है । यह अच्छी बात है इसीलिये यहाँ हर तरह का पाठक वर्ग मिलता है । आवश्यकता इस बात है कि यहाँ भी धैर्य रखा जाये और इस माध्यम से बेहतर देने का प्रयास किया जाये । ब्लॉगिंग की छवि को उज्ज्वल करने की दिशा मे हर व्यक्ति का प्रयास होना चाहिये । दूसरे आपने बहुत ही अच्छी भाषा मे अपने विचार व्यक्त किये है इस बात के लिये भी आपको साधुवाद - शरद कोकास ,दुर्ग छ.ग.
प्रभात जी
आपके सारगर्भित आलेख का आभार.
हिन्दी ब्लॉगिंग रफ्तार ले रही है किन्तु अभी लगभग पूरा ही सफर बाकी है. ऐसे वक्त में जबकि प्रोत्साहन और स्नेह की जरुरत सभी नवागंतुको को है, छोटी छोटी बातों पर मतभेद और लम्बे समय तक खींचते रहना कतई उचित नहीं प्रतीत होता है.
आज जरुरत है नये लोगों को जोड़ने की, उन्हें पढ़ने की, उन्हें प्रोत्साहन देने की ताकि हिन्दी ब्लॉगिंग अपना विस्तार पा सके.
सभी को यथासंभव कुछ समय देना होगा. एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करना होगा. याद रखना होगा कि एक दिन हमने भी इस दुनिया में पहला कदम रखा था और प्रोत्साहन की बाट जोह रहे थे. हम सभी को प्रोत्साहन मे मिले दो मीठे शब्द, मार्गदर्शन, इस बात का प्रमाण की जो हमने लिखा है, वो पढ़ा गया, सराहा गया आज भी हौसला देता है लिखते रहने का.
सभी से आकांक्षा है कि खुल कर हिन्दी ब्लॉगिंग के विस्तार में यथासंभव योगदान करें और विकास का मार्ग प्रशस्त करें.
हिन्दी ब्लॉगिंग के सुखद और विस्तृत भविष्य के लिए मैं आशांवित हूँ और मेरी अन्नत शुभकामनाएँ सभी के साथ हैं.
सादर
समीर लाल
आपक यह (शुभ ) सोचना व्यर्थ नहीं जाएगा !
सुन्दर बात कही है आपने!!
ek nahi kai chirag upasthit hain par sahab , unhen pahchan kar aage badhane kee jarurat hai . unhe bhaw dena band karen jo print se thak haar kar idhar chale aaye hain paisa bhi bnaa rhe hain aor kachra v faila rhe hain.
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