Saturday, September 5, 2009

सितारों की व्यक्तिगत जिंदगी को सार्वजनिक मंच पर लाने की पहल बंद होनी चाहिए

कहते हैं जोड़ियां ऊपर बनती हैं। ऊपर में ही तकदीर का खेल लिख दिया जाता है। उसके बीच सितारों की शादियों, उनकी जोड़ियों के टूटने, छींकने, खाने और रहने की तमाम खबरों से एक मसाला उभर कर आता है। ये मसाला आज न्यूज चैनलों और अखबारों में सबसे ज्यादा स्पेस और समय लेता है। इनमें तमाम तरह की पुट और हींग, मिर्च की छौंक मिलायी जाती है, जिससे एक प्रकार की अपनी धमक से सबकी नाक में दम कर दे। फलाने सितारे का तलाक हुआ, फलाने सितारे की जोड़ियां टूटी, फलाने ने साथ रहने का फैसला किया.... । बेसिर पैर की बातें, बेसिर पैर के तर्कों के साथ अखबार और न्यूज चैनलों में खबरों के नाम पर उलटियां की हुईं मिलेंगी। दूसरे की व्यक्तिगत जिंदगी में झांकने, उसमें खंगाल कर मजा लेने की आदत जो आम जनता जनार्दन को लग चुकी है, वह क्या संदेश दे रही है? अब तो हालात ये हैं कि सितारों की दोस्ती बाजार के ख्याल से कुछ दिनों के लिए होती है और फिर खत्म हो जाती है। सलमान, शाहरुख, कैटरीना, ऐश्वर्या राय या कोई भी हों, उनके व्यक्तिगत जीवन की घटनाएं पेज वन पर अहम खबरों के बीच स्थान पाती हैं। ये आम आदमी को हैसियत के हिसाब से उसके बौने का अहसास करा जाती है। यहां तमाम विचारों के बीच हमें खबरों को आम आदमी के हिसाब से परोसने की कला सीखनी होगी। आम आदमी को ये अहसास हो कि उनकी जिंदगी की खबर सबसे बड़ी है। अगर किसी सितारे के सामाजिक योगदान की खबर हो, तो उसे परोसना बेहतर तरीके से होना चाहिए। ये उन तमाम उठ रहे सवालों का जवाब भी होगा।

अब तो सीरियलों में हो रहे तलाक और शादियों की खबरों को चटपटा बनाकर न्यूज की तरह पेश किया जा रहा है। हद है, हमारे आधे घंटे बेतुके समाचारों के नाम पर ऐसे ही ले लिये जाते हैं। खबर, उसमें आदमी की जिंदगी के जुड़े होने का अहसास और समय का महत्व तीनों चीजों का सम्मिलित मिश्रण ही खबरों की परोस तकनीक में दम ला सकता है। बड़े लोगों की व्यक्तिगत जिंदगी में होनेवाली ताक-झांक कितने मायने में उचित है, ये सवाल हर समय उठता रहता है। ये खबरों के बाजार के बिजनेस के नीचे गिरते स्तर को भी इंगित कर रहा है। सस्ती खबर, सतही बातें और गप्पी मिजाज को प्रश्रय देनेवाले ये प्रयास कितने सराहनीय हैं, ये सोचिये। धर्म को लेकर बना बाजार शायद उतना नहीं चल पाया। इसलिए हाल के दिनों में इस मामले में खबर परोसने के प्रयास कम दिखे। रावण की ममी की खोज न के बराबर हुई। मंगल पर कभी कोई देवता दिखे थे या नहीं, या हमारे किसी तथाकथित अवतार के पैरों के २० फुटवाले निशान कहीं मिले हैं या नहीं, इस पर भी तकरार कम ही हुई है। सनसनी, व्यक्तिगत जिंदगी में हस्तेक्षेप और खबरों के व्यापार के बीच आम आदमी को महत्व मिले, इसकी परंपरा तो कहीं न कहीं से शुरू करनी होगी। आम आदमी को सितारों के परफारमेंस, उनके अभिनय से प्यार होता है, व्यक्तिगत जिंदगी से नहीं। ऐसा नहीं होता, तो कितने सितारे यूं ही बेदर्दी की जिंदगी जीते हुए नहीं मरते। पूरी दुनिया पेशेवर है। उसके हिसाब से जिंदगी और खबरों के प्रति भी पेशेवर नजरिया होना चाहिए। सितारों की व्यक्तिगत जिंदगी को सार्वजनिक मंच पर लाने की पहल बंद होनी चाहिए।

2 comments:

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

विचारणीय पोस्ट

बी एस पाबला

Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

अमर उजाला में लेख..

अमर उजाला में लेख..

हमारे ब्लाग का जिक्र रविश जी की ब्लाग वार्ता में

क्या बात है हुजूर!

Blog Archive