Sunday, October 25, 2009

ब्लागरों को झप्पी कौन देगा?

मुन्ना भाई यानी संजय दत्त फिल्मों में गांधीगिरि करते हुए जादु की झप्पी देते रहते हैं। जादु की झप्पी दी और पलभर में नाराजगी दूर हो गयी। इस झप्पी में प्रेम का संवाद होता है शायद। हम अपने यहां आज तक झप्पी न देते हैं और न लेते हैं। लेकिन आज सुरेश चिपलूनकर जी के नाराजगी भरे पोस्ट को पढ़कर पहले लगा कि इस बारे में लिखा जाये या नहीं। हमारी बातचीत के दौरान प्रायः ये बात उठती है कि ब्लागिंग को क्या एक सीमित दायरे में बांधा जा सकता है। क्या इसमें स्पेशलाइजेशन भी किया जा सकता है? ये एक ऐसा एंगल है, जिसमें सारा विवाद निहित है। मान लिजिये, व्यावहारिक दृष्टिकोण से किसी चीज के बारे में आपको जानना है, तो क्या आप किसी ब्लाग की ओर रुख करेंगे? क्या उस ब्लाग के दावे की आथेंटिसिटी रहती है? अगर है भी, तो वह उस लिंक के सहारे, जिसे कि उसमें इंगित किया जाता है। सर्च इंजिन पर जाकर खास विषय को खंगाला जा सकता है। यहां मुख्य मुद्दा ब्लागिंग को स्पेशलाइजेशन से जोड़ने का है। ब्लागिंग यानी बेलाग बात। खुलकर बात करने की जगह। यहां ज्यादातर लोग शौकिया लेखक की तरह आये रहते हैं। वैसे में मनुष्य की प्रकृति के अनुसार कोई खास योगदान की इच्छा नहीं रहती। जब ब्लाग को लोग पत्रकारिता का दूसरा रूप बताते हैं, तो उसमें भी आश्चर्य होता है। आप क्या यहां किसी जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार करते हैं, ये एक अहम सवाल है? ज्यादातर लोग एक बागी का रूप अख्तियार किये रहते हैं। ऐसा, जैसे कि पूरी दुनिया को बदल देनी है। यहां सीधे और सपाट तौर पर ये प्रश्न पूछने को जी करता है कि आखिर आप कैसी क्रांति लाना चाहते हैं। दूसरा सवाल ये कि दस हजार ब्लाग्स में २० या कहीं अधिकतम सौ पूरे उन दस हजार ब्लागरों को प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं। हमारे हिसाब से ब्लागिंग को लेकर कोई कैटेगराइजेशन नहीं किया जा सकता है। यहां कोई नियंत्रण प्रणाली नहीं है और न ही जिम्मेदार व्यवहार की हर किसी से अपेक्षा ही की जा सकती है। साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति और अन्य वादों को लिखी जा रही चीजों में ज्यादातर बकवास की श्रेणी में रखी जा सकती है पहले जरूरी चीजें ये हों कि नाम कमाने की जो छद्म राजनीति इस जगत को घायल कर रही है, उसे बंद किया जाये। यहां तीन चीजों पर ही बहस होती है - सेक्स, जातिगत चिंतन और साहित्य या भाषा। इन तीनों बहसों से अलग जब मुद्दों पर देश को प्रभावित करनेवाली बहसों को ब्लाग जगत धार देगा, तभी इसकी महत्ता बढ़ेगी। और तभी इसे लेकर एक मंच पर बहस की जा सकती है कि ब्लागिंग का स्वरूप किया हो। लाग लपेट के साथ बातचीत करनेवालों को ब्लागर नहीं कह सकते हैं और न ही मात्र साइट बनाकर उसमें चीजों को डालनेवाले को ब्लाग लेखन। जिस दिन बेलाग होकर लोग बिना प्रभावित हुए बहस को अंजाम देने लगेंगे, उस दिन हिन्दी ब्लाग जगत में नयी ऊर्जा का संचार होगा। आज दस हजार से ज्यादा ब्लाग है, लेकिन पाठक नाम मात्र। मान लिजिये, दो हजार ब्लाग सक्रिय है, तो आठ हजार निष्क्रिय भी तो हैं। जब तक आप उन आठ हजार को अपनी बिरादरी में पूरी तरह शामिल नहीं कर लिजिएगा,तब तक ये मंथन बेकार है। आप ब्लागर मीट कर सकते हैं, लेकिन मंथन के लिए अभी वक्त बचा हुआ है। अभी काफी समय है। ये भी सोचना होगा कि ब्लाग और साहित्य में अंतर है। हम जैसे लोग अगर टिपिया कर साहित्यकार होने का भ्रम पाल लें, तो इससे बड़ी मूर्खता दूसरी कोई नहीं होगी। ब्लाग को न तो पत्रकारिता से जोड़िये और न साहित्य से। यहां लोगों को मन की बातों को लिखने के लिए प्रेरित करें, न कि बुद्धिजीवी होने का ऐसा छद्म स्तर तैयार करें कि कोई भी नया उसे देखकर ही डर या गश खा जाये। हो ऐसा ही रहा है। आखिर में गपशप करना भी तो ब्लागिंग ही है, चाहें बोलते हुए करें, या लिखते हुए।

6 comments:

Unknown said...

jai ho........

Udan Tashtari said...

लाग लपेट के साथ बातचीत करनेवालों को ब्लागर नहीं कह सकते हैं - कहीं कुछ कन्फ्यूजन है भाई इस विचारणीय पोस्ट में...आप क्या वाकई ब्लॉगर की बात कर रहे हैं?? ब्लॉगर तो हर वो व्यक्ति है जो ब्लॉग चलाता है.

ये तो वैसा ही चिन्तन हो गया कि अगर साहित्यकार न कहलाये तो लेखक भी नहीं.

पेड़ ठीक से लग जाने दें फिर मानक स्थापित कर उस हिसाब से वर्गीकरण अपने आप हो जायेगा. समय आ रहा है किन्तु अभी वर्गीकरण और उत्कृष्टता पर मनन करने की बजाय प्रसार पर मनन करने का वक्त है.

अभी बस अधिक से अधिक लोगों को इसकी शाक्ति, सामर्थ्य के बारे में बता कर उन्हें इस ओर आने को प्रोत्साहित करें. फलों के वृक्ष की पहचान करने में सब सक्षम हैं धतूरा कोई नहीं खायेगा लेकिन शायद दवा बनाने के काम आ जाये.

सभी को आने दें. सभी का स्वागत करें. स्थापना में मदद करें.

शुभकामनाएँ.

Unknown said...

@ उड़न तश्तरी - "सभी को आने दें. सभी का स्वागत करें. स्थापना में मदद करें…"
काश कि आपकी बात सबकी समझ में आये, चुन-चुनकर बहिष्कार या उपेक्षा ब्लॉग जगत में तो चलने वाली नहीं है… साहित्य और इतिहास में बहुत चला ली अब तक।

दिनेशराय द्विवेदी said...

ब्लागरी में सब कुछ है। गपशप भी और भी सब कुछ!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

ब्लागरी की जादूगरी सर चढ़ कर तो बोले, फिर देखिए क्या गुल खिलते हैं। अभी से बंटवारा क्यों?

शरद कोकास said...

अभी तो दिल्ली दूर है.. लेकिन दिल्ली जाना किसे है? हमे तो नही!!!

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