Wednesday, November 4, 2009
याद आती हैं इंदिरा
आज के दौर में लीडरशिप की परिभाषा क्या हो, कैसी हो, इस पर लगातार बहस होती रहती है। लेकिन ऐसे दौर में इंदिरा गांधी एक सशक्त उदाहरण के तौर पर बतायी जाती है। ३१ अक्तूबर को जब इंदिरा जी की पुण्यतिथि मनायी जा रही थी, तो मन बचपन की उन धुंधली यादों में खो गया या कहें, वे यादें ताजी हो गयीं, जो उनकी मौत के बाद आज तक जेहन में कैद हैं। हमारी पीढ़ी छोटी थी, लेकिन ये वो दौर था, जब television ने अपनी पटकथा की शुरुआत की थी। उस जमाने में इंदिरा की अंतिम यात्रा की झलकियों को हमारी आंखों ने दूरदर्शन के स्क्रीन पर देखा था। अंतिम क्षणों में राजीव के शांत चेहरे की वह हकीकत आज भी जीवंत है। उसके बाद राजीव का पूर्ण बहुमत से जीतना और आगे की यात्रा की कहानी भी किसी से छिपी नहीं है। उसी दौरान इंदिरा के व्यक्तित्व के हर पहलू से लेखों के माध्यम से हम परिचित होते चले गए। हमारी पीढ़ी ने उस महिला के शासन को पूरी तरह अनुभव नहीं किया। उस दौर को नहीं देखा, जब सही मायनों में शासन हुआ करता था। जब लीडरशिप के तौर पर आज के नेताओं से तुलना की जाती है, तो सिर्फ आह भर निकलती है। आज लीडरों में चुनौतियों से लड़ने की हिम्मत नहीं दिखती और न ही देश के सामने खड़े दुश्मनों को ललकारने की। इंदिरा की मौत के बाद अंतिम विदाई के वक्त उमड़ी भीड़ का दृश्य आज भी याद आता है। उस परिवर्तन के दौर की आज से तुलना करने पर हम खुद को कहां पाते हैं। आप मानिये या न मानिये, लेकिन गांधी परिवार ने बलिदान की अनोखी गाथा रची है। उस बलिदान को तुच्छ क्यों माने? ये एक सवाल है, जो हर बार पूछने को जी करता है। इंदिरा को हमारी पीढ़ी ने संपूर्ण तरीके से नहीं जाना और न जानने की कोशिश ही की। शायद लंबा समय गुजर गया है इसलिए। इंदिरा गांधी ने अपनी हर पहल पर निर्णायक होने की चुनौती को स्वीकार किया था। वह सही होता या गलत, कुछ भी। उस समय टेलीविजन पर श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़ते जनसैलाब को देखकर ये समझ नहीं आता था कि आखिर ऐसा क्यों है? लेकिन जब बाद में जाना, तो मस्तक बार-बार बतौर श्रद्धांजलि खुद ही झुक जाता है। इंदिरा के जीवन के हर पहलू से परिचित नहीं हुए, लेकिन जितना जाना, उसमें वे आज की लीडरों से श्रेष्ठ लगती हैं।
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1 comment:
यदि ये कहा जाए कि इंदिरा काल स्वतंत्र भारत की राजनीति का सबसे बेहतरीन समय था तो मुझे नहीं लगता कि विरोधी भी इस बात से इंकार कर सकते हैं ..और आज के हालातों में सचमुच ही इंदिरा की याद आती है ।
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