Friday, January 15, 2010

खबरों की परिभाषा फिर से तय हो जरूरी है


कोई व्यक्ति कैसे खबर बन जाता है? कोई गांव कैसे कहानी बन जाती है? खबर.. क्या है? न जाने कितनी परिभाषाएं बनायी और समझायी गई हैं, मुझे आज तक समझ में नहीं आता खबर क्या है? कोई घटना कब खबर है, कब नहीं है, इसके पीछे के द्वंद्व क्या हैं, काफी शोध चाहिए।


शिबू का गांव चार महीने पहले तक मामूली जान पड़ता था, आज उनके सीएम बनने के बाद महत्वपूर्ण जान पड़ता है। शिबू जिस रास्ते जाते हैं, वहां की हर चीज खबर बन जाती है। खबर की भूख, सूचना, सही सूचना की भूख रोजमर्रा की बात हो गयी है। 


इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए जो दर्शक पसंद करे, शायद वही खबर है, लेकिन प्रिंट मीडिया के लिए खबर क्या है, जो सही सूचना है, वह खबर है। उसे परोस दीजिए। बस कोशिश हो कि तरीके से मसाला लगाकर परोसें।



खबरों के पीछे की दुनिया अजीब होती है। उस खबर के पीछे कौन सी खबर है, ये भी एक उलझन भरा होता है। आखिर उस खबर को देने या घटना के पीछे क्या उद्देश्य है? शायद उसे ही खोजी पत्रकारिता कहते हैं। लेकिन ये खोजी पत्रकारिता इतनी तात्कालिक पत्रकारिता के दौर में कहां चली गयी। कहां, कोई नहीं जानता। कंटेंट के गिरते स्तर को लेकर लोग चिंतित हैं। पत्रकार चिंतित हैं। वैसे में खबरों की परिभाषा फिर से तय हो जरूरी है।

वैसे एक बात जो जानता हूं बता दूं


कुत्ता ने काटा तो खबर नहीं और आदमी ने काटा, तो खबर है..

3 comments:

संगीता पुरी said...

व्‍यावसायिक सफलता के लालच या हर स्‍तर पर राजनीति से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा अब .. कहां सच्‍चाई देखने को मिलेगी !!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

दर्शकों की मांग कैसे पता चलती है? इसका पैमाना क्या है? जो दिखाया जाता है वही दर्शक देखता है जनाब. जो पकाया जाता है वही खाया जाता है. जो माल बाजार में ठूंसा जाता है वही बिकता है.

विनीत कुमार said...

क्या खबर है और क्या नहीं? इसे जानने-समझने का एक तरीका जो मुझे समझ में आता है कि परंपरागत तरीके से खबर की जो भी परिभाषाएं हैं उन्हें एक जगह जमा कर लिए जाएं।...फिर उसमें से जो बच जाता है,जो खबर के दायरे में नहीं आता,आज वो खबर है। टीवी चैनलों के अनुभव तो यही बताते हैं। देखिए न,पहले सूर्यग्रहण एक खबर नहीं थी लेकिन आज उसी खबर को देखकर लगता है कि इतनी अंधविश्वासी तो मेरी दादी भी नहीं हुआ करती थी। मेरी नानी इतनी पाखंड़ी नहीं है जितने कि चैनल के लोग बताते हैं।..तो खबर का एक सिरा ये भी पकड़ा जाना चाहिए कि ये खबर सूचना के स्तर पर हमें किता समृद्ध करते हैं और कितना पहले के मुकाबले मानवीय बनाते हैं?

Prabhat Gopal Jha's Facebook profile

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

अमर उजाला में लेख..

अमर उजाला में लेख..

हमारे ब्लाग का जिक्र रविश जी की ब्लाग वार्ता में

क्या बात है हुजूर!

Blog Archive