आपको सुन्दरता से एलर्जी क्यों है ?क्या ताजगी भरा सौदर्य है!
मन प्रफुल्लित हो गया -हाँ आपका यह कहना ठीक है कि विषय के साथ उसका कोई तारतम्य नहीं पर विश्यास्कती के साथ तो है मेरे भायी
फिर रचना जी का कमेंट आया
maansik rogi bahut hae samaj mae jo kewal duartaa kae bhawarae maatr haen unko vishy sae nahin vastu sae { kyuki unki nazar mae naari kaa saundarya vastu maatr haen } pyar haen
अब हम असमंजस में हैं कि बासी और ताजा सौंदर्य क्या होता है? सुंदरता किसे अच्छी नहीं लगती। लेकिन एक नजरिया होना चाहिए। कोई स्त्री कितनी भी सुंदर हो, लेकिन व्यवहार उचित और संयम भरा नहीं हो, तो सुंदरता के क्या मायने? अब सवाल ये उठता है कि ताजा सौंदर्य क्या होता है? ताजा सौंदर्य की परिभाषा क्या है? हम आज तक ताजा सौंदर्य का मतलब नहीं समझ पाये। यहां ताजा शब्द के इस्तेमाल पर जोर है।
सब्जी ताजी हो सकती है। ताजी भात या दाल हो सकती है, जो तुरंत बनी हो, लेकिन क्या सुंदरता, वह भी स्त्री की सुंदरता ताजी हो सकती है।
बड़ी मुश्किल है। हमें लगता है कि हम किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये। यहां कठिन हिन्दी शब्द का प्रयोग कर दिया, क्योंकि इसे समझने के लिए भी सामान्य व्यक्तियों को शब्दकोष का सहारा लेना पड़ेगा। मुझे अब उस शब्दकोष की तलाश है, जिसमें इस ताजी या बासी की पूरी बारीक जानकारी हो।
जहां तक हमें लगता है, तो ये मनुष्य के लालन-पालन और उसके वातावरण पर निर्भर करता है कि वे किसी चीज, वस्तु या किसी महिला को भी कैसे देखते हैं। यहां विचारों के महासमुद्र में दैहिक सुंदरता का क्या मतलब है? क्या हम अगर किसी वृद्धा की तस्वीर होगी, तो उसे नापसंदगी के दायरे में लायेंगे। सीधे तौर पर मन शर्म से पानी-पानी हो रहा है।
मुझे अपनी भारतीय संस्कृति की वह परिभाषा याद है, जहां नारी को पूजनीय कहा गया है। नारी शक्ति है और इसके पीछे के अर्थ को समझने से पहले अपने नजरिये को ठीक करना होगा। बड़ी-बड़ी बातें करना अपनी जगह है, लेकिन उसे व्यावहारिक रूप से अमल में लाना अपनी जगह। हमें लगता है कि हम कम से कम इस ब्लाग जगत को गलत अवधारणा से मुक्त करें।
13 comments:
पहले टिप्पणी को सही कर दूं -
आपको सुन्दरता से एलर्जी क्यों है ?क्या ताजगी भरा सौदर्य है!
मन प्रफुल्लित हो गया -हाँ आपका यह कहना ठीक है कि विषय के साथ उसका कोई तारतम्य नहीं पर विषयासक्ति से तो है !
यह थी इंगित पोस्ट पर टिप्पणी !
जैसे ताजा फल ,ताजा फूल ,ताजा जल ,वैसे ही ताजा सौन्दर्य -'अनाघ्रातम पुष्पं किसलय मलूनम कर रुहे '-कालिदास का फेमस श्लोक है -मतलब भी झा साहब समझ लीजिये -
शकुन्तला के सौन्दर्य के बारे में कवि कहता है -उनका सौन्दर्य बिना सूघे हुए पुष्प सा है (मतलब बासी नहीं ,ताजा ....) और वह एक ऐसी कली हैं जिन्हें किसी ने तोड़ा नहीं है ----(अब असली मतलब तो संस्कृत के विद्वान् बताएगें जो अब सौभाग्य से प्रभूत मात्रा में नेट पर भी हैं मैं तो आपकी और बिरीव्ड पार्टीज की सुविधा के लिए एक कामचलाऊ अर्थ बता दे रहा हूँ )
सौन्दर्य वह है जो ह्रदय को सहसा आह्लादित कर दे -वह फोटो यहाँ भी लगा कर देखिये न ! मेरी बात गलत हो तो जो कहें स्वीकार है -हाँ बाकायादा रायशुमारी कराईये .
और हाँ झा साहब -असली सुन्दरता देखने वालों के मन में ही होती है -और ऐ थिंग आफ ब्यूटी इज ज्वाय फार एवर ! पमगर हाय उन लोगों के लिए जिनसे कुदरत ने न जाने क्यों यह क्षमता छीन ली है -उनके लिए तो बस अफ़सोस ही किया जा सकता है -उन्हें सब कुछ विकृत विगलित ही दीखता है -
अभी तो बस इतना ही बड़ा विषय है -वह फोटो जरूर लगा दीजिये अब -यहाँ वह जस्टी फायिड है !
अरविंद जी मैं न तो संस्कृत का विद्वान हूं और न ही इतिहास में जाना चाहता हूं। मामला शिष्टता का है। जब आप पोस्ट लिख रहे हों या कमेंट कर रहे हों, तो एक दायरा होना चाहिए।
हम यहां कोई सौंदर्यबोध के लिए नहीं आये हैं। अगर ऐसा ही है, तो दूसरे भी कई रास्ते हैं। दूसरी बात हमारे दूसरे ब्लाग पर व्याकरण के हिसाब से आपने गलत शब्दों का प्रयोग किया, जिसे आपने यहां ठीक किया, इससे लगता है कि आपमें टिप्पणी देने की हड़बड़ी थी।
हड़बड़ाइये मत, धैर्य से सोचिये कि क्या सही है और क्या गलत? सुंदरता का बोध कराने के लिए ब्लाग जैसा मंच नहीं है। विषय यह था कि पोस्ट पर संदर्भ से अलग हटकर किसी की तस्वीर लगाना कहां तक उचित है?
१ क्या वहां उस तस्वीर का किसी बात से सरोकार है?
२. वहां कला की बात की जाती है। महान पुरोधाओं की मूर्ति के निर्माण के बंद होने का उल्लेख है। वहां कला के साथ तस्वीर, वह भी स्त्री की तस्वीर का क्या मतलब है.
३. हमने पूछा था कि किसी ब्लाग में पोस्ट से अलग तस्वीर लगाने का क्या मतलब है, तो आपका जवाब भी संदर्भहीन था। आपका जवाब स्पष्ट होना चाहिए था।
लगता है कि आपने जानबूझ कर वैसे कमेंट्स छोड़ा, जिससे बहस आगे बढ़े, जिसे हमने आगे बढ़ाने का काम किया।
जो भी हो, आप संस्कृत के जानकार हैं। आज ज्यादा जानते हैं। लेकिन हम ये जानते हैं कि ब्लाग जैसे सार्वजनिक मंच का इस्तेमाल शिष्टता के दायरे में करना ही उचित है। क्या हम यहां अशिष्टता का समर्थन करने के लिए पुरजोर ताकत लगाते रहें.. ??
अगर यह अशिष्टता है तो फिर आपसे मुझे कुछ कहना -आप अपनी पाठशाला चलाते रहें!
@कुछ नहीं कहना !
एक पुनर्व्याख्या -
बात केवल इतनी सी थी की एक सुन्दर तस्वीर विषयगत प्रविष्टि से सम्बद्ध न होकर भी इंगित स्थल पर लगाई गयी है -यह उचित है या नहीं -
बिलकुल उचित नहीं है -मगर प्रश्नगत फोटो निश्चय ही सुन्दर है -सुन्दरता को सुन्दर कहना कहीं भी गुनाह नहीं है .
यहाँ असंगत यह अवश्य है कि इसे लेकर मां बहन बेटी के घिसे पिटे पिटाए प्रायोजित प्रलाप शुरू कर दिए गए हैं !
अधिसंख्य भारतीयों के साथ यही सबसे बड़ी मुश्किल है वे किसी भी मामले पर सहज और स्पष्ट दृष्टि नहीं रख पाते -सामाजिक वर्जनाओं और आधुनिकता के खोखलेपन ने उनका विवेक छीन लिया है -आज ही किसी अभिनेत्री का बयान है की उसे सेक्सी कहा जाना अच्छा लगता है -और वह सही है मगर अब उसके पीछे शुचितावादी कुत्तों की तरह पड गए हैं -
वी आर अ कन्फ्यूज्ड लाट !
@अरविन्द जी,
वी आर अ कन्फ्यूज्ड लाट !
सही लिखा आपने किसी कि सुन्दरता का वर्णन और विषयासक्ति के लिए एक करण बनाना अलग अलग बात है, आप जिनको शुचितावादी कुत्ते कह रहे हैं, वे आपसे अधिक न सही कम से कम से कम स्तर के ही सही ब्लॉगर है और ये ब्लॉग्गिंग आपकी खुदकी तस्वीर को ही प्रदर्शित करती है. जैसे विषय से इतर चित्र लगाना गलत है वैसे ही विषय से इतर टिप्पणी देना भी मानसिक दिवालियेपन कि निशानी है. जिसको अपनी पाठशाला चलानी होगी वह चलाएगा , आपको राय देने कि जरूरत नहीं है.
--
वाह!! अजीब है नारीवादियों आप सब उस आदमी से नैतिकता की उम्मीद कर रहे हैं जो कभी विज्ञान के नाम पर यशवंत सिंह उवाचित चिकोटी काटने की विधियों का उल्लेख करता है|कभी नायिका चर्चा करता है|जाने लोगों को अक्ल कब आएगी, किसी में समझ ही नही है|
लोग पार्वती (कालिदास )और सीता (बाल्मीकि ) के श्रृंगारिक(अश्लील ) वर्णन पर अंगुली नही उठाते|राजा रवि वर्मा की नग्न पेंटिंग्स पर आपत्ति नही दर्ज करते|पौराणिक नग्नता को तर्क दे दे कर ढंकते हैं|उन्हें ही हुसैन पर आपत्ति होती है|लोग गाँधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग की प्रशंसा करते हैं उन्हें किसी चित्रकार द्वारा सर कटा चित्रित करने पर आपति है|मुझे किसी कुंठित चित्रकार से सहानूभूति नही है,पर दोगलेपन की हद दिखाना जरुरी है,अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तब हर आयाम में होनी चाहिए.अगर नही है स्त्रियों का उपयोग और उनपर राजनीती करना छोडो.
प्रभात
नारी ब्लॉग पर बहुत बार हमने इस प्रकार कि पोस्ट लगाई हैं कि ये अनुचित हैं और हर बार कुछ ऐसे नाम उभर कर आये जिनको इस मे कुछ भी अनुचित नहीं लगा । लोग तस्वीरो के नीचे फ़ोन नंबर भी लगा कर दूकान चला रहे हैं क्या ?? आपत्ति करी तो पता चला "क्युकी नारी हूँ और आपति कर रही हूँ तो नारी वादी हूँ " अगर हम सब खुद इसको खतम नहीं करेगे तो कौन करेगा ?? लेकिन गिने चुने नाम हैं जो अब लोगो कि उँगलियों पर आगये हैं जो निरन्तर केवल और केवल नारी को "वस्तु" मान कर उसका आकलन करते हैं । नारी शरीर उनके लिये वो किसी भी उम्र के क्यूँ ना हो केवल और केवल एक खिलौना मात्र होता हैं । विद्वानों मे भी जाहिल पना पाया जाता हैं प्रभात अन्यथा ये कहावते ना बंटी पढे लिखे जाहिल ।
सुख हुआ कि और लोग हैं जो इस जहालत के खिलाफ बोल रहे हैं ।
विद्वान हैं और सौंन्दर्य प्रेमी लोग अपनी बात सही साबित करके ही मानते हैं। विषय कोई भी हो वे अपनी वही बात रखेंगे जो उनको रखनी है।
गोपाल जी वह फोटो विषय से संबंधित नहीं है। अच्छा होता कि यह बात आप उसी पोस्ट पर कह देते और अपना विरोध दर्ज कर देते। आप इस तरह लिख कर बतायेंगे/पूछेंगे तो टिप्पणी दर टिप्पणी आपको ज्ञान मिलता जायेगा।
अनूप जी के कमेट से असमंजस कुछ कम हुआ :)
.
.
.
आदरणीय प्रभात गोपाल जी,
वह पोस्ट डॉ.लाल रत्नाकर जी की थी, यदि आप उसी ब्लॉग पर की गई उनकी पुरानी पोस्टें भी देखें तो आप पायेंगे कि यह उनका स्टाईल है, विषय से हट कर कोई कोलाज, पेंटिंग, मूर्ति या फोटो भी अकसर लगाते हैं वे पोस्ट पर, ब्लॉग के हेडर को भी देखें तो वहाँ पर भी दो स्त्रियों को दिखाती कलाकृति लगी है । कोई आपत्तिजनक बात तो नहीं ही है यह... एक सुन्दर महिला की तस्वीर देख यदि अरविन्द जी ने कह दिया कि उसमें ताजगी भरा सौन्दर्य है तो इस कमेंट का बाल की खाल निकालने की हद तक विच्छेदन कतई उचित नहीं।
आप जिस मंशा से यह बात उठा रहे हैं वह सफल नहीं होने वाली
यदि आप ताज़गी भरे सौंदर्य का उपमान नहीं जान पा रहे तो बेहतर है बासी हो चुके वाक्यों पर ध्यान न दें।
प्रत्येक व्यक्ति की अपनी शैली होती है और एक बासी हो चुका वाक्य है कि 'प्रत्येक ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर क्या लिखता, बताता, रखता, चिपकाता है उससे दूसरों को कतई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। मन करता है तो पढ़े वरना चलता बने। पाठक के हिसाब से ब्लॉग नहीं लिखा जाएगा। मैं अपने ब्लॉग पर जो मर्जी लिखूँ, मेरी मर्ज़ी'
किसी ने किसी के ब्लॉग पर एक सुन्दर महिला की तस्वीर देख यदि कह दिया कि उसमें ताजगी भरा सौन्दर्य है तो इस कमेंट से आपके पेट में दर्द क्यों होने लग गया?
आप कह तो रहे हैं कि यहां कोई सौंदर्यबोध के लिए नहीं आये हैं। तो फिर भी बासी और ताज़े के चक्कर में क्यों पड़ रहे?
प्रसन्नता होगी यदि आप अपने ताज़े टिप्पणीकर्तायों की बासी पोस्टें पढ़ कर अशिष्टता को पुन: परिभाषित कर सकें
कुछ अच्छे सकारात्मक विषय पर लिखे-पढ़े, केवल टी आर पी के चक्कर में ऐसी पोस्ट क्यों लिखी जाती है .
पुरुष -नारी के अलावा और कोई बात नही है क्या.
काहे को भेजा खराब करेला है बाप.
चर्चित होने के लिए बासी विषयों पर लिखना बंद करें.
Post a Comment