Wednesday, March 17, 2010
राजनीति की ऐसी की तैसी ...
मायावती आज जो करती हैं ठोंक-बजाकर करती हैं। सामनेवाले को ये बताकर करती हैं कि देखो हम ये कर रहे हैं। आज मायावती भले ही नोटों की माला के कारण चर्चा में हों, लेकिन हमें उनकी एक बात पसंद है कि अधिकार के लिए उन्होंने याचना नहीं की, संघर्ष किया। अपने दम पर बसपा को ऐसी पहचान दी कि आज वह एक ताकत बन चुकी हैं। सामान्य बोलचाल में बहन जी ने संघर्षों के कांटों को फूलों में बदल दिया। हमें तो ज्यादातरर राजनीतिक उनकी बिछी बिसात से पराजित होने के बाद कराहते नजर आते हैं। भारतीय राजनीति में जहां वंशवाद और क्षेत्रवाद की आंधी चल रही है, वहां मायावती का राजनीतिक कद आज इस कदर ऊंचा हो गया है कि मन कहता है-आज की महिला नायक मायावती ही हैं। अगर मायावती थोड़ी मजबूत नहीं होती, तो क्या जिस राजनीतिक कद को उन्होंने पाया है, उसे पाया जा सकता था। भारतीय राजनीति में समीकरणों को अपने पक्ष में कैसे किया जाये, इसे उनसे सीखना होगा। बहन जी से खतरा महसूस करते तमाम राजनीतिक दल उनके खिलाफ चाहे जो कहें, लेकिन मायावती की सपाट राजनीति के सामने उनकी बोलती बंद है। अगर तेलंगाना को अलग करने की बात उठी, तो यूपी को तीन हिस्सों में बांटने के उनके प्रस्ताव ने सही और गलत परिप्रेक्ष्य में बहस शुरू कर दी। जैसे को तैसावाला मायावती का जवाब थोड़ा तिलमिलाता जरूर है, लेकिन ये हमारे देश की राजनीति को आज एक नयी धार दे रहा है। वैसे मायावती को ये भी समझना होगा कि जिस संघर्ष के बल पर आज उन्होंने इस ऊंचाई को पाया है, वहां पर नोटों की गड्डी कोई काम नहीं देनेवाली। वहां तो उनसे देश को दिशा देनेवाली पहल की उम्मीद होती है। क्या ऐसा हो पायेगा? अगर हो गया, तो कांग्रेस को भाजपा के अलावा तीसरी ताकत मायावती को पछाड़ने के लिए नयी रणनीति अपनानी होगी।
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4 comments:
आप तो माया के भक्त दिखाई पड रहे हैं :-)
खैर आपको इनमें खूबियाँ दिखाई दे रही होंगीं लेकिन हमें तो यही लगता है कि आजतक सिर्फ दलितों, मजलूमों के नाम पर सत्ता हथियाने के सिवाय इस "महामाया" नें देश और समाज की तो खैर बात ही छोड दीजिए, दलितों तक के लिए किया क्या है? सिवाय जनता के पैसे से बडे बडे बुत्त खडे करने और अपने अहं की पूर्ती के साधन जुटाने में.....
माया पर निशाना लगाईये ठीक है, लेकिन बाकियों को छोड़ा क्यों जा रहा है?
कांग्रेसियों के करोड़ों-अरबों रुपये स्विस बैंकों में जमा हैं लेकिन मायावती के नाम से ही उनके पेट में दर्द होने लगता है, क्योंकि उन्हें "ज़मीनी संघर्षों" से ऊपर उठे हुए लोग पसन्द नहीं हैं… उन्हें "थोपा हुआ" नेता अधिक प्रिय होता है… :)
(यहाँ कांग्रेसी = मीडिया भी समझा जा सकता है, क्योंकि दोनों आपसी सहयोग से एक-दूसरे का पिछवाड़ा धो रहे हैं… जरा याद करने की कोशिश कीजिये कि सोनिया-राहुल के खिलाफ़ कोई खबर आपने किस चैनल या अखबार में देखी?)
मायावती के इस तरह के व्यबहार और तौर -तरीके का विश्लेषण करते समय यह देखना होगा कि ये उसने कहाँ से सीखा...इसकी जड़ें राजनीति में पहले से ही मौजूद हैं...शेर को सवा शेर मिल गया है तो बाकी दल बाले खिसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोंच रहे हैं....
लड्डू बोलता है...इंजीनियर के दिल से....
http://laddoospeaks.blogspot.com
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