Tuesday, March 30, 2010

रांची जैसे शहर में बढ़ती गरमी, किसी कयामत का दस्तक जरूर दे रही

कभी-कभी जिंदगी ऐसे सवाल करती है, मानो वह खुद ही सवाल पूछ रही हो। यहां गरमी की दुपहरी में इस शहर की जिंदगी को भी लगता है जैसे नजर लग गयी है। कभी रांची आते, तो हरियाली के बीच और पेडों के झुरमुटों के नीचे आपको गरमी का अहसास नहीं होता था। विभाग ने सड़क चौड़ी करने के नाम पर किनारे के पेड़ों को काट डाले हैं। यहां की पहाड़ियों पर लोगों ने घर ही बनाना शुरू कर दिया है। सरकारी जमीन का कोई माइ-बाप नहीं है। जंगल की जगह सपाट मैदान या कंक्रीटों का जंगल दिखता है। इस शहर की तस्वीर बदल गयी। कभी गरमी की राजधानी कही जानेवाली रांची लगता है, जैसे लगता है आज आसमान से आग उगलते सूरज से दहक रही है। आदमी जिंदा है, पर उसे ये अफसोस नहीं कि इस नारकीय  स्थिति के लिए वही जिम्मेवार है। अलग राज्य बना, सपने संजोये गये, लेकिन पांव जमीं पर है नहीं और लगातार दस सालों से आसामान की सैर हो रही है। बर्बादी की तस्वीर देखनी हो, तो रांची आइये। सड़कें जवान जिंदगियां लील रही हैं, क्योंकि सड़कों पर गड्ढों को भरा नहीं जाता। कह रहे थे कि रांची की सुंदरता को नजर लग गयी है। हर दो किमी पर बनते अपार्टमेंटों ने तस्वीर ही बदल दी है। बोरिंग से पानी का दोहन तो है, लेकिन पानी का भंडारण कैसे हो, ये देखनेवाला या व्यवस्था करनेवाला कोई नहीं। जब पृथ्वी के रहस्यों को जानने के लिए धरती को भेदा जा रहा है, तो इसे बचाने के लिए इतने ही बड़े स्तर पर सामूहिक प्रयास क्यों नहीं होते। रांची जैसे शहर में बढ़ती गरमी, किसी कयामत का दस्तक जरूर दे रही है।

2 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जब तक जनसंख्या वृद्धि नहीं रोकी जाती और संसाधनों का दोहन नहीं रोका जाता, स्थिति गंभीर होती जायेगी.

P.N. Subramanian said...

पिछले एक दो वर्षों से जलवायु में परिवर्तन होता आ रहा है. इस वर्ष गर्मी भी हर प्रान्त में बढ़ी है. चाहे मुंबई हो या केरल. आगे न जाने क्या होगा. वैसे मूलतः हम सब दोषी है. पर्यावरण की कभी भी चिंता नहीं की और मन मानी करते आये.

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