निरूपमा की मौत के बाद रह-रहकर एक सवाल मेरे जेहन में बार-बार आ रहा है कि इस देश में ऐसे न जाने कितने प्रियभांशु होंगे, जो अपने रिश्ते को एक नाम देने से घबराते हैं। महानगर में रहना, वहां का स्वतंत्र जीवन जीना और परिवार से दूर रहकर खुद के लक्ष्य के प्रति समर्पित रहना किसने अच्छा नहीं लगता। जरूर रहो, मजे में रहो, लेकिन उससे कई जिम्मेदारियां भी साथ जुड़ती चली जाती हैं।
एक जिम्मेवारी ये रहती है कि आप जिससे रिश्ता रख रहे हैं, उस रिश्ते के प्रति आपमें कितना समर्पण है। जब निरूपमा को ये पता चला होगा कि उसके पेट में गर्भ है, तो क्या उसके दिल में ममता का ज्वार नहीं फूटा होगा? तब क्या उसने अपने अब तक के रिश्ते को एक कदम आगे बढ़कर विवाह जैसे संस्कार से जुड़ने की बात नहीं की होगी। सवाल ये है कि इतना लंबा समय यानी दो महीने से ज्यादा समय गर्भ धारण के गुजर जाने के बाद भी अब तक इस दिशा में कदम क्यों नहीं उठाया गया।
भले ही पश्चिम समाज की नकल करते हुए, नारी अधिकार की आवाज उठाते हुए या स्त्री के अस्तित्व के नाम पर विवाह की बात को दरकिनार करने की सौ बात की जाये, लेकिन ये सच है कि एकल मातृत्व का बोझ किसी भी महिला के लिए बड़ा कठिन होता है। वह भी तब जब खुद नौकरी करके बड़े शहर में उसे जीवनयापन करना है। ऐसे में जब रिश्ते के मामले में दो लोग इतने आगे बढ़ गये थे, तो जिंदगी भर का हमसफर बनने में बड़ी रोक क्या थी?
हमारा मकसद ऐसी हजारों निरूपमाओं के लिए आवाज उठाना है, जो बड़े या छोटे शहरों में भावना के नाम पर ऐसे जंजाल में फंसती चली जाती हैं., जहां से निकलना कठिन हो जाता है।
निरूपमा के मामले में उसका अंत इतना बुरा हुआ हो, लेकिन एक बात सच है कि वह अपने माता-पिता की एकलौती बेटी थी। उसकी पढ़ाई-लिखाई में कोई कोताही नहीं बरती गयी। साथ ही उसे इतनी स्वतंत्रता दी गयी कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में जाकर वह स्वतंत्र होकर जीवनयापन कर सके। ऐसे में उसके मां-बाप का उसके प्रति पहले जो प्रेम या समर्पण था, उससे हम कैसे इनकार कर सकते हैं?
प्रियाभांशु को इस मामले में मीडिया की ओर से भी सवाल किये जाने चाहिए कि अब तक शादी जैसा कदम उसने क्यों नहीं उठाया? जब प्रियभांशु टीवी पर न्याय की गुहार लगाता रहता है, तो लगता है कि एक सच को मीडिया छिपाने का काम कर रहा है। उससे सवाल पूछा जाना चाहिए कि उसका ये गैर-जिम्मेवार रवैया क्यों रहा? और ये सवाल बार-बार पूछा जाना चाहिए।
निरूपमा आइआइएमसी की छात्रा थी, इसलिए इस मामले में मीडिया इतना सक्रिय भी हो गया, लेकिन इसके साथ सवाल उन हजारों निरूपमाओं का भी है, जो प्रियभांशु जैसे शख्स के झूठे प्रेमजाल में फंसकर अपने अस्तित्व से खिलवाड़ कर बैठती हैं।
हम बार-बार यही सवाल उठा रहे हैं कि निरूपमा के गर्भधारण के समय से जो स्थिति थी, उसमें प्रियभांशु की क्या भूमिका रही। इस मामले में मीडिया क्यों नहीं उससे सवाल जवाब कर रहा है? माता-पिता ने अगर आनर किलिंग की है, तो उन्हें सजा जरूर मिलेगी, लेकिन प्रियभांशु भी सवालों के कठघरे में है।
इलेक्ट्रानिक मीडिया प्रियभांशु से एक पत्रकार होने से इतर, उसके एक युवक होने के नाते और एक रिश्ते के प्रति जिम्मेदार होने के सवाल पर सवाल-जवाब करे। नहीं तो मीडिया के रोल पर भी कई सवाल उठ खड़े हो रहे हैं। निरूपमा ने जाते-जाते समाज के सामने कई सवाल छोड़ दिये हैं। हजारों निरूपमाओं को इसी बहाने से जीवन में नया रास्ता मिले, इसका प्रयास होना चाहिए। महिला आयोग भी इस मामले में जरूर कदम उठाये कि एक महिला के अस्तित्व से खिलवाड़ करनेवाले को अब तक क्यों नहीं सवालों के घेरे में लिया गया है?
मुझे प्रियभांशु के शोकाकुल चेहरे में कोई ऐसा दर्द नजर नहीं आता, जिसके लिए मैं उसके साथ न्याय के लिए आवाज बुलंद करूं। हां निरूपमा के हत्यारों को सजा देने की
मांग जरूर करता हूं, लेकिन प्रियभांशु के साथ न्याय की गुहार लगानेवालों में कभी शामिल नहीं होऊंगा। क्योंकि मुझे ऐसे में एक वैसे शख्स का साथ देने का गुनाह नजर आता है, जो अपनी जिम्मेवारियों से लगातार भागता रहा। उसने रिश्ते के नाम पर उस लकीर को पारकर लिया,जिसके बाद एक महिला तीसरे रिश्ते मातृत्व की ओर आगे बढ़ती है। अगर रास्ते में इतनी लंबी दूरी कर ली थी, तो प्रियभांशु से सवाल वही है कि रिश्ते को एक नाम देने में देरी क्यों की।
तस्वीरें मोहल्ला लाइव से साभार...
साथ में पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कॉपी...
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12 comments:
समाज में कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं /जो अच्छी हर चीज को खराब अंत तक पहुचाने का ही काम करते हैं /अच्छी सार्थक सोच पर आधारित तथ्यों को खोजती रचना के लिए आपका धन्यवाद /
आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं /
priyabhanshu is equally liable for punishment.... He should also be booked.... Afterall he was the only person whose deeds led nirupama to death.
धारा के विपरीत विचार रखने के लिये आपको बधाई… एकदम सही लिखा है आपने…। प्रेमी भी कठघरे में होना चाहिये… ये एकतरफ़ा बयानबाजी गलत है।
बेहद सटीक बात आपने कही ! थोड़ा आगे बढ़कर मैं भी उन लोगो से, जो इस मामले में बहुत ज्यादा चिलपों मचा रहे है , एक सवाल करूंगा कि वे इमानदारी से यह जबाब दे कि यदि उनके क्वारी बेटी अथवा बहन एक दिन आकर यह खुश खबरी दे कि वह मां बनने वाली है, तो क्या वे मोहल्ले में मिठाई बांटेंगे ? क्या बेटी का कोई फर्ज नहीं बनता अपने उन माँ-बाप के प्रति जिन्होंने अपने सुख का परित्याग कर उसे इस लायक बनाया था ? क्या यही उसने पढ़ा-लिखा था, जो उसे इतना भी मालूम न था कि विवाह पूर्व शारीरिक सम्बन्ध बनाते वक्त आसानी से मौजूद गर्भ निरोधक सामग्री को इस्तेमाल किया जाना चाहिए ? माँ-बाप से भड़कर दोष उस प्रेमी का नहीं जिसने शारीरिक शुख के लिए किसी की बेटी को गर्भवती बनाकर इस मुकाम पर ला छोड़ा कि उसके पास या फिर उसके घर वालो को यह सब सोचने करने पर विवश होना पडा? इस देश में यूँ तो हमारे ये सड़े गले क़ानून धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी देते है, मगर साथ ही यह नहीं देखते किनागरिक का धर्म क्या कहता है ? किन सीमाओं , कुरीतियों में बंधा है ? वयस्क को मनमर्जी करने की स्वतंत्रता तो दे दी मगर " बदचलन " शब्द को परिभाषित नहीं किया !
यक़ीनन कुछ सवाल वाजिब है .....
प्रेमी भी कठघरे में होना चाहिये… ये एकतरफ़ा बयानबाजी गलत है।
@ आपके साथ सुरेश जी की इस बात से सहमत
कुछ देर पहले देखा मीडिया के सामने टसुये बहाता हुआ प्रियभांशु(?).. मगरमच्छी आंसू ही थे ये.. प्रेमिका को शादी से पहले गर्भवती बनाना क्या शानदार नैतिक और चारित्रिक सफलता है इसकी.. थू है ऐसे लोगों पर... शादी करनी थी ठीक है.. लेकिन गर्भवती करना..
प्रभात जी ,
पहली बात तो ये कि पोस्ट से पोस्टमार्टम रिपोर्ट की छवि हटा लें तो ठीक रहेगा , कारण कई हैं बताना ठीक नहीं है , फ़िलहाल तो बस इतना कि अभी इसका अनुसंधान हो रहा है ।
आपकी पोस्ट ने इतना प्रभावित किया कि मुझे खुद ही एक पोस्ट लिखनी पड गई । यदि टिप्पणी भर लिख कर रह जाता तो अन्याय होता इस विषय के साथ । आपने घटना का वो पहलू सामने रखा जिसे अभी तक कोई देख नहीं पाया था । शुक्रिया और आभार आपका
तस्वीर आपकी पोस्ट से ली है साभार , इसलिए अलग से फ़िर से आभार आपका
ye main bhi soch hi raha tha.. aapne likh kar achchha kiya. Galti Priyabhaanshu kee bhi kam nahin hai, yadi wo jimmewariyaan nahin dho sakta tha to itne aage tak aane ki jaroorat hi kya thi? ye baat bhi sach hai ki aajkal metro cities me har doosra ladka isi tarah ka ghoomta mil jayega.. aise logon ko ladkiyon ki narm bhavnaon ko samajhna nahin aata balki unhe sirf ek khilaune ki tarah istemaal karte rahte hain.
Kis nyay ki baat kar raha hai wo? kya Nirupama ke maa-baap ko fansi mil gai to uske baad ye ladka shadi nahin karega kabhi?
प्रियाभांशु को इस मामले में मीडिया की ओर से भी सवाल किये जाने चाहिए कि अब तक शादी जैसा कदम उसने क्यों नहीं उठाया? जब प्रियभांशु टीवी पर न्याय की गुहार लगाता रहता है, तो लगता है कि एक सच को मीडिया छिपाने का काम कर रहा है। उससे सवाल पूछा जाना चाहिए कि उसका ये गैर-जिम्मेवार रवैया क्यों रहा? और ये सवाल बार-बार पूछा जाना चाहिए।
सहमत और पुरजोर समर्थन -ये तो वैसा जी लल्लू निकला जैसा दिख रहा है !
आपके सवाल बिलकुल जायज़ हैं
रिश्तों में लड़कों को भी ज़िम्मेदारी उतनी ही समझनी पड़ेगी , और ऐसी स्थिति न बने ख्याल रखना होगा
ऐसे समय पर लड़के और लड़की दोनों के परिवार पर बहुत बुरा असर पड़ता है
और क़ानून ये भले ही अपराध नहीं माने , पर ये सामाजिक अपराध ज़रूर है
और अब कोई लड़की प्रिय्भंशु पर भरोसा कैसे कर सकती है
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