

उस समय भाजपा के नेता राहुल महाजन के नाम पर मुंह चुराते नजर आ रहे थे, क्योंकि राहुल महाजन को वे भविष्य का नेता बताने से भी नहीं चूके थे.भारतीय राजनीति की ये त्रासदी है कि बड़े बाप के बेटे को आंख मूंदे पार्टियां समर्थन देने लगती हैं. तब किसी तरह उनकी जिंदगी पटरी पर आयी और उन्हें श्वेता से शादी रचायी. लेकिन राहुल महाजन के रुखे व्यवहार से श्वेता भी उन्हें छोड़ कर चली गयीं.
मुझे लगता है कि भारतीय मीडिया के लिए राखी सावंत के बाद राहुल महाजन सबसे अनमोल हीरे हैं. उन्हें लेकर भारतीय मीडिया दीवानी है. तभी तो लफंगा परिंदा जैसी हेडिंग देते हुए पूरी कहानी बताती है. राहुल का मस्त अंदाज बिग बॉस-२ में भी देखने को मिला और फिर उसके बाद उन्होंने पूरी दुनिया के सामने अनमोल दूल्हा बनते हुए डिम्पी से ब्याह भी रचाया. इस बेशर्म दुनिया में ये कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं हुई, जब राहुल जैसे लड़के से सबकुछ जानते हुए भी लड़कियों की शादी करने के लिए लाइन लग गयी.
डिम्पी जी भी राहुल महाजन को झेल नहीं पायी और आज उनके घर की बात मीडिया की बात बन गयी. राहुल को लेकर मीडिया कुछ ज्यादा ही परेशान है. राहुल हमारे देश की इमेज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैसा बना रहे हैं, ये बोलनेवाले चीज नहीं है. उनका मस्ताना अंदाज जगजाहिर है. अगर कोई और अब तक वैसा ही व्यवहार करे, तो सामाजिक तौर पर उसका बहिष्कृत होना निश्चित है, पर यहां हमारा मीडिया और हमारे जैसे लोग राखी सावंत और राहुल महाजन को हीरो बनाने पर तुले हैं.
बदनाम हुए तो क्या, नाम तो होगा, इसी तर्ज पर राहुल महाजन हीरो बनते जा रहे हैं. वे नेशनल मीडिया में दूल्हे बनकर करोड़ों कमाते हैं. उनकी ऐश है. आखिर राहुल महाजन को देखकर हमारे देश के यूथ क्या सोचेंगे. हमारी मीडिया, हम जैसे लोग खुद के साथ क्या अन्याय नहीं कर रहे.
दो मिनट के स्टारडम ने लोगों को नशीला बना डाला है. चैनलों पर बच्चों के डांस काम्पटीशन एक ऐसे परिवेश का निर्माण कर रहे हैं, जहां संस्कार शब्द गाली की तरह लगता है. राहुल के रूप में कोई अपना बेटा या पति नहीं चाहेगा, लेकिन राहुल के सोने से लेकर उनका गुस्सा तक मीडिया के लिए आंधे घंटे की बुलेटिन है. आज प्रमोद महाजन अगर जीवित होते, तो एक पिता के नाते अपने बेटे से कैसे व्यवहार की उम्मीद करते, ये सोचनेवाली बात है. राहुल हीरो भी हैं, विलेन भी और कुछ हद तक मैनिपुलेटर भी. वह जानते हैं कि किसी अवसर को कैसे कैश कराया जाए. ये हमारी मीडिया की त्रासदी है कि हम अंधी दौड़ में राहुल जैसे पत्थर को हीरा मानकर लपकने को तैयार हैं.
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