चलिए अन्ना को अनुमति मिल गयी, लेकिन इसके साथ-साथ उन अवसरवादियों को भी, जो कि अब तक सिर्फ मूक दर्शक थे. हर शहर में सिविल सोसाइटी का गठन हो चुका है. और उसमें भी वही लोग शामिल हैं, जिन्होंने अब तक राजनीतिक कशमकश में पूरी जिंदगी गुजार दी है. अन्ना का आंदोलन सफल हुआ है, तो सिर्फ इलेक्ट्रानिक मीडिया के कारण. एक बात सीधे तौर पर कह सकता हूं कि आम आदमी के लिए अन्ना का आंदोलन चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात है. रामलीला मैदान में लगातार डफली बजाते रहने से सरकार को थोड़ी देर के लिए जरूर झुका लिया गया, लेकिन ये कहना बेवकूफी है कि सरकार अंततः बात मान लेगी. अन्ना को राजनीति नहीं आती. वो सीधे बात करते हैं और यही ईमानदारी उनका हथियार है. वहीं कांग्रेसी बातों में उलझा कर जंग जीतना जानते हैं. सिर्फ मनीष तिवारी जैसे प्रवक्ता ही बात करने में आपा खो बैठने के कारण फेल हो जाते हैं. हमें लगता है कि अन्ना के मूवमेंट को हाइजैक कर लिया गया है. अब इसमें वैसे लोग शामिल हो रहे हैं, जिनकी ईमानदारी पर सार्वजनिक जीवन में स्वतः सवाल लग चुका है. कह सकता हूं कि अन्ना का आंदोलन पांच दिन बाद कूल-कूल हो जाएगा.
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गांव की कहानी, मनोरंजन जी की जुबानी
अमर उजाला में लेख..
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3 comments:
yahi to kah rahe hain...
अरे बेवफा, जब मेरे दोस्त अन्ना के साथ आन्दोलन कर रहे थे और मैं तेरी जुल्फों की छाँव में गुलजार को पढ़ रहा था, उस पर भी तुम किसी और की हो गयी, और मैं आज तुम्हारे बच्चों से आँखे चुराता घूमता हूँ.... कहीं मामा न कह दें.....
http://deepakmystical.blogspot.com/2011/08/blog-post_18.html#comments
मुझे तो लगता है कि यह प्रेशर रिलीज वाल्व की तरह काम न करे...
One prosper better if he/she is optimistic.Your judgement regarding ANNA needs re-evaluation.Your views expressed smacks pessimistic odour.
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