जिस झारखंड में मैं रहता हूं , स्पोट्र्स को लेकर, आईपीएल की चमक को लेकर, रेव पार्टी की बात को जानकर और सुनकर थोड़ा खुद को गंवई टाइप का हो गया मानता हूं. जमाने की स्पीड के साथ नहीं बढ़ पा रहा. अपुन का शौक का भी बस लिमिटेड है. ज्यादा बहुत हो गया तो कोल्ड ड्रिंक्स की एक बोतल गटक लेता हूं. कुछ कहें या ना कहें, लेकिन अपने आसपास ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा देखता हूं, जो बेहिसाब पैसा कमाने वालों में नहीं हैं. जिनके लिए दाल-रोटी की जुगाड़ में भिड़े रहना एक मजबूरी है. ऐसे में आईपीएल के पूरे तमाशे में शाहरुख खान की बादशाहत को चुनौती देते एक गार्ड की फोटो ने जेहन पे ऐसा असर डाला कि बार-बार अब भी शाहरुख की ओर इशारा कर ह्वीसल बजाते गार्ड की तस्वीर आंख के सामने से गुजर जाती है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गार्ड ने मीडिया वालों से ही तंग होकर अपनी फैमिली को मुंबई से बाहर भेज दिया है. मुझे ताज्जुब इस बात से है कि इस देश में आखिर इतना फर्क क्यों है? चंद लोगों के पास इतना पैसा है कि आईपीएल, रेव पार्टी या यूं कहें कि सारी अय्याशी के लिए इंतजामात हैं. वहीं दूसरी तरफ वो लोग भी हैं, जो बस एक कोल्ड ड्रिंक की बोतल खरीदकर अपनी हसतरें पूरी कर लेते हैं. अगर आप झारखंड से हैं, तो यहां कई हाकी या फुटबाल खिलाडिय़ों को बस यूं ही भटकते, चाय बेचते या फटेहाली की जिंदगी गुजारते देख सकते हैं.
मीडिया में, फेसबुक के वाल पर अभी आप जाएंगे, तो आपको क्रिकेट को गरियाते हुए पोस्ट मिल जाएंगे. सब लोग चिंतित हैं. लेकिन इनमें से 80 फीसदी ऐसे हैं, जिन्होंने बस अपने अहम की तुष्टि के लिए पोस्ट लिखे हैं या चिंता जाहिर की है. अगर उन्हें भी इस आईपीएल के तमाशे के लिए इनवाइट किया जाए, तो वो दौड़े-दौड़े चले आएंगे. कीर्ति आजाद ने तो क्रिकेट को बचाने के लिए धरना भी दे दिया है. लेकिन क्या हम सोचते हैं कि जिस क्रिकेट को हमने आहें भर-भरकर इस मुकाम तक पहुंचाया, उसका इस्तेमाल कर हमें ही मूर्ख कर कैसे पैसा बनाया जा रहा है.
आप हर आईपीएल देखनेवाले के प्रति व्यक्ति द्वारा बतौर दर्शक निवेश किए गए समय पर गौर करें. आप पाएंगे कि वर्किंग आउटपुट का 80 फीसदी भाग आईपीएल ले ले रहा है. इस देश में जब पेट्रोल की कीमतों में और दस रुपए बढ़ाने की बात हो रही है, तो कहीं से भी कोई विरोध नहीं करता है. लेकिन आईपीएल, रेव पार्टी के नाम पर बवाल में सब नंगे होने को उतारू हैं. हर बात में सट्टा लगने-लगाने की बात भी सुनी जाती है. सौ के हजार बनते होंगे. लेकिन ये सट्टा कौन लगाता है. ये वो लोग लगाते हैं, जिनके पास कुछ एक्स्ट्रा है. ये एक्स्ट्रा हमारे और आपके पास नहीं है. क्योंकि हम लोग कामन मैन हैं. हमने अपने पैसों का गलत इस्तेमाल करना नहीं सीखा. हम ईमानदार हैं. हमारे जमीर को कुछ गलत करने पर चोट पहुंचती है. पैसा बनाने की कला हमारे पास नहीं है. ऐसे में वो गार्ड भी उन्ही कामन मैन में से एक है और रहेगा.
शाहरुख की उस पर उठी उंगलियां उस कामन मैन के जमीर को भी ठेस पहुंचा रही है, जो कि पैसा बनाना नहीं जानता है. अपने मिले वेतन के पैसे से जिंदगी गुजारता है. जो किसी माल या बड़े सिनेमा घर में अपने बच्चों को इसलिए नहीं ले जा पाता होगा, क्योंकि वहां लगनेवाली कीमत उसके औकात से ज्यादा होंगी. सवाल यही है कि इतना गलत हो रहा है और संस्कार, ईमानदारी, करप्शन हटाने की बात करनेवाली सरकार चुप है. मौन है. क्रिकेट के नाम पर हो रही बेइज्जती को बर्दाश्त कर रही है.
क्या हमारी सरकार या हमारे सिस्टम में इतनी गैरत नहीं कि वो कोई भी आयोजन, चाहे वो प्राइवेट ही क्यों न हो, बिना किसी विवाद के करा सके. आईपीएल पर उठ रहीं उंगलियां दिल पर चोट करती हैं. आमिर खान को भी अपने सत्यमेव जयते को इस इश्यू की ओर मोड़ देना चाहिए. क्योंकि इस मुद्दे पर हर किसी के दिल को चोट पहुंचनी चाहिए. दिल को लगना चाहिए. पिछले एक सप्ताह में जितने विवाद हुए हैं, उसके बाद ये बताने की जरूरत नहीं है कि आईपीएल को सुर, शबाब और पैसे के काम्बिनेश न को तोड़ कर उसे नया प्रोफेशनल मंच बनाया जाए, प्रोफेशनलिज्म अख्तियार करने का मतलब कैरेक्टर को पूरी तरह ढीला कर देना नहीं होता है. आईपीएल के नाम पर देश बदनाम हो रहा है, साहब. कोई सुन रहा है..क्या?
2 comments:
प्रभात जी, सब गोलमाल है. दो नम्बर का धन एक नम्बर में करने की कवायद. सरकार तो आँखे मूंदेगी ही. उनके लोग भी तो कर्ता धर्ता हैं.
जो नहीं कोई नहीं सुन रहा है , जो सुन रहा है वो समझ नहीं रहा या कहिए कि समझना नहीं चाहता और जो समझ रहे हैं ,उनके सुनने से फ़र्क ही क्या । सामयिक और सटीक लिखा आपने । किंतु एक शिकायत है , आपने लिखा ,
"मीडिया में, फेसबुक के वाल पर अभी आप जाएंगे, तो आपको क्रिकेट को गरियाते हुए पोस्ट मिल जाएंगे. सब लोग चिंतित हैं. लेकिन इनमें से 80 फीसदी ऐसे हैं, जिन्होंने बस अपने अहम की तुष्टि के लिए पोस्ट लिखे हैं या चिंता जाहिर की है."
तो अस्सी प्रतिशत तो वे भी निकल गए , बकिया आजाद बाबू कल बैठे थे साढे तीन घंटे के लिए । कितने प्रतिशत के साथ पता नहीं , लेकिन यदि हमारे जैसे आम आदमियों की सुनी जाए तो एक झटके से बंद कर देना चाहिए बिल्कुल खटाक से ।
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