अंकल कैसे हैं? अपने क्वार्टर से नीचे उतरते वक्त ऊपर के तल्ले पर
रहनेवाले पड़ोसी से टकराते ही पहला सवाल. चिर-परिचित अंदाज में हंस कर ठीक
है कहना और आगे बढ़ जाना. नहीं तो परिवार या मौसम के बारे में दो बातें,
शब्दों के आदान-प्रदान के बाद अपनी-अपनी राह चल निकलना. ये मेरी जिंदगी का
हर रोज का पार्ट है. सुबह दस बजे आफिस के लिए निकलने के दौरान अंकल मिल ही
जाते हैं.
थोड़ा बैक ग्राउंड में ले चलता हूं. कुछ महीनों पहले घर में स्पेस की कमी की वजह से मां-बाप से दूर एक बड़े से फ्लैट में बतौर किराएदार खुद को शिफ्ट कर लिया था. जिसमें मैं अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ रहने लगा. बड़े-बड़े कमरे, बड़ा सा अपार्टमेंट. सुख-सुविधा सारा कुछ. लेकिन वहां दस बजे निकलने के दौरान बगल में रहनेवाले पड़ोसी मुस्कान से स्वागत करते नहीं मिले. वह मिलते, टकराते और फिर अपनी राह चल निकलते. दिन, हफ्ता और महीना गुजरता चला गया. स्थिति ऐसी हो गई कि बड़े से डैम के किनारे खड़े होने के बाद भी पानी के लिए तरस रहे हों. न कोई मुस्कुराहट और न ही गुस्सा. एकदम प्रोफेशनल लोगों से भेंट मुलाकात.
रांची से शहर में जहां लोग गर्मजोशी से मिलते हैं मुझे बदलते जमाने का अहसास हुआ. मन तड़पने लगा था. अंत में एक दोस्त से इस बारे में राय जाहिर की. उसने बताया कि अगर ऐसा है, तो लौट आओ अपने उसी पुराने आशियाने में यानी मां-बाप के पास. बस वहां एक ही चीज की कमी होगी कि तुम्हें वो रूम का बड़ा स्पेस नहीं मिलेगा, लेकिन दिल का बड़ा स्पेस मिलेगा. जहां बड़े दिलवाले पड़ोसी हैं और हाय-हेलो करनेवाले चंद परिचित. हम जैसे आम लोग, जो दौड़-भाग वाली नौकरी करते हैं, वह हो रहे इन सामाजिक बदलावों से परिचित नहीं हो पाते हैं. खास कर जब उन्हें अच्छे पड़ोसी मिले हों और मुस्कुराते रहनेवाले लोग. दर्द होने के बाद भी उस पर पेन रिमूवर क्रीम लगानेवाले चंद हाथ तुरंत मिल जाते हैं. ऐसे में जब रियल सिचुएशन से सामना होता है, तो स्थिति सांप-छुछंदरवाली हो जाती है.
सेल्फ सेंटर्ड होते जा रहे लोगों से टकराने पर अवसाद में पड़ने जैसी स्थिति होने लगती है. ऐेसे ही फेसबुक पर दो हजार से ज्यादा दोस्त हैं, लेकिन अगर उनमें से किसी को चैट रूम में तकलीफ दी, तो अजब-गजब रिएक्शन अधिकांश मामलों में मिल जाएंगे. कई भड़ासी भी ऐसे मिल जाएंगे, जो अपने कमेंट्स से आपको तिलमिलाने की कोशिश करें. वे यह नहीं सोचेंगे कि इस ओपेन वर्चुअल स्पेस पर हर कमेंट हजारों निगाहों से होकर गुजरती है और ये किसी की इज्जत को चिंदी-चिंदी कर सकती है. यूं कहें कि आप बेगानेपन की स्थिति से दूर होने की कोशिश करने के लिए अगर चंद दोस्तों या परिचितों का साथ चाहेंगे, तो उसके लिए आपको भाग्यशाली बनना होगा. क्योंकि ऐसे बिरले ही लोग होंगे, जिन्हें रोज मुस्कुरा कर हाय हेलो करनेवाले पड़ोसी मिल जाएं. सौभाग्य से मुझे मिले हैं, मैं खुश हूं और आज इसे आपसे शेयर कर रहा हूं.
अगर आप थोड़ा गंभीर होकर सोचें, तो पाएंगे कि प्रोफेशनल होना जितना आसान होता है, उतना ही मुश्किल होता है किसी को स्नेह से बांधना. शायद इसी प्रोफेशनल होते माइंडसेट ने कोर्ट में तलाक के केसेज बढ़ा दिए हैं. दूसरों के लिए खुद को समर्पित करनेवाले लोग नहीं मिलते. आज कल मेरे हिसाब से पहले जैसी समर्पित मां, पिता, भाई, बहन या पत्नी कम ही मिलती हैं. ये वे लोग हैं, जो तमाम तकलीफों को सहते हुए भी आपके लिए अपनी सुविधाएं छोड़ने के लिए तैयार रहते हैं.आपकी खुशी अपनी खुशी लगती है. टूटते घर और लगातार बनती बड़ी बिल्डिगों के बीच आपके जेहन में भी ये सब बातें आती ही होगी. मुझे लगता है कि अच्छे पड़ोसी, अच्छी बेटियां, अच्छे माता-पिता और अच्छी पत्नी को पाकर मैं शायद इस दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान हूं, तो ये गलत नहीं होगा. ईश्वर से कोई शिकायत नहीं. अब शिकायत सिर्फ उन लोगों से है, जिन्होंने प्रोफेशनल होने का ढोंग कर अपने जैसों की संख्या ज्यादा कर ली है और इसे बदलते जमाने का नाम दे दिया है.
थोड़ा बैक ग्राउंड में ले चलता हूं. कुछ महीनों पहले घर में स्पेस की कमी की वजह से मां-बाप से दूर एक बड़े से फ्लैट में बतौर किराएदार खुद को शिफ्ट कर लिया था. जिसमें मैं अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ रहने लगा. बड़े-बड़े कमरे, बड़ा सा अपार्टमेंट. सुख-सुविधा सारा कुछ. लेकिन वहां दस बजे निकलने के दौरान बगल में रहनेवाले पड़ोसी मुस्कान से स्वागत करते नहीं मिले. वह मिलते, टकराते और फिर अपनी राह चल निकलते. दिन, हफ्ता और महीना गुजरता चला गया. स्थिति ऐसी हो गई कि बड़े से डैम के किनारे खड़े होने के बाद भी पानी के लिए तरस रहे हों. न कोई मुस्कुराहट और न ही गुस्सा. एकदम प्रोफेशनल लोगों से भेंट मुलाकात.
रांची से शहर में जहां लोग गर्मजोशी से मिलते हैं मुझे बदलते जमाने का अहसास हुआ. मन तड़पने लगा था. अंत में एक दोस्त से इस बारे में राय जाहिर की. उसने बताया कि अगर ऐसा है, तो लौट आओ अपने उसी पुराने आशियाने में यानी मां-बाप के पास. बस वहां एक ही चीज की कमी होगी कि तुम्हें वो रूम का बड़ा स्पेस नहीं मिलेगा, लेकिन दिल का बड़ा स्पेस मिलेगा. जहां बड़े दिलवाले पड़ोसी हैं और हाय-हेलो करनेवाले चंद परिचित. हम जैसे आम लोग, जो दौड़-भाग वाली नौकरी करते हैं, वह हो रहे इन सामाजिक बदलावों से परिचित नहीं हो पाते हैं. खास कर जब उन्हें अच्छे पड़ोसी मिले हों और मुस्कुराते रहनेवाले लोग. दर्द होने के बाद भी उस पर पेन रिमूवर क्रीम लगानेवाले चंद हाथ तुरंत मिल जाते हैं. ऐसे में जब रियल सिचुएशन से सामना होता है, तो स्थिति सांप-छुछंदरवाली हो जाती है.
सेल्फ सेंटर्ड होते जा रहे लोगों से टकराने पर अवसाद में पड़ने जैसी स्थिति होने लगती है. ऐेसे ही फेसबुक पर दो हजार से ज्यादा दोस्त हैं, लेकिन अगर उनमें से किसी को चैट रूम में तकलीफ दी, तो अजब-गजब रिएक्शन अधिकांश मामलों में मिल जाएंगे. कई भड़ासी भी ऐसे मिल जाएंगे, जो अपने कमेंट्स से आपको तिलमिलाने की कोशिश करें. वे यह नहीं सोचेंगे कि इस ओपेन वर्चुअल स्पेस पर हर कमेंट हजारों निगाहों से होकर गुजरती है और ये किसी की इज्जत को चिंदी-चिंदी कर सकती है. यूं कहें कि आप बेगानेपन की स्थिति से दूर होने की कोशिश करने के लिए अगर चंद दोस्तों या परिचितों का साथ चाहेंगे, तो उसके लिए आपको भाग्यशाली बनना होगा. क्योंकि ऐसे बिरले ही लोग होंगे, जिन्हें रोज मुस्कुरा कर हाय हेलो करनेवाले पड़ोसी मिल जाएं. सौभाग्य से मुझे मिले हैं, मैं खुश हूं और आज इसे आपसे शेयर कर रहा हूं.
अगर आप थोड़ा गंभीर होकर सोचें, तो पाएंगे कि प्रोफेशनल होना जितना आसान होता है, उतना ही मुश्किल होता है किसी को स्नेह से बांधना. शायद इसी प्रोफेशनल होते माइंडसेट ने कोर्ट में तलाक के केसेज बढ़ा दिए हैं. दूसरों के लिए खुद को समर्पित करनेवाले लोग नहीं मिलते. आज कल मेरे हिसाब से पहले जैसी समर्पित मां, पिता, भाई, बहन या पत्नी कम ही मिलती हैं. ये वे लोग हैं, जो तमाम तकलीफों को सहते हुए भी आपके लिए अपनी सुविधाएं छोड़ने के लिए तैयार रहते हैं.आपकी खुशी अपनी खुशी लगती है. टूटते घर और लगातार बनती बड़ी बिल्डिगों के बीच आपके जेहन में भी ये सब बातें आती ही होगी. मुझे लगता है कि अच्छे पड़ोसी, अच्छी बेटियां, अच्छे माता-पिता और अच्छी पत्नी को पाकर मैं शायद इस दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान हूं, तो ये गलत नहीं होगा. ईश्वर से कोई शिकायत नहीं. अब शिकायत सिर्फ उन लोगों से है, जिन्होंने प्रोफेशनल होने का ढोंग कर अपने जैसों की संख्या ज्यादा कर ली है और इसे बदलते जमाने का नाम दे दिया है.
6 comments:
.एक एक बात सही कही है आपने ."महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें" आभार मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध के लिए आधुनिक महिलाएं कितनी जिम्मेदार? रत्ती भर भी नहीं . .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात WOMAN ABOUT MAN
गिन लें कि दिन में कितनी मुस्काने कृत्रिम हैं तो सामाजिकता का भ्रम भी दम तोड़ देगा।
समय शायद बहुत तेजी से बदल रहा है..
वाकई अच्छे माता-पिता, भाई-बहन, बच्चे, पडौसी पाना सौभाग्य की बात है। वर्ना आज कल की प्रोफेशनल, भाग-दौड़ से भरी ज़िन्दगी में निरस्त ही निरस्त है!
ऐसा लग रहा है कि आपने मेरे अनुभव को बयान कर दिया है.बधाई इस सु-आलेख पर!
ऐसा लग रहा है कि आपने मेरे अनुभव को बयान कर दिया है.बधाई इस सु-आलेख पर!
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