पहले दिन खबर आयी कि पत्रकार निरूपमा की करंट लगने से मौत हो गयी। अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था। उसमें जिस बात का खुलासा हुआ, उससे सब सकते में थे। मामला ये था कि गला घोंटकर निरूपमा की हत्या की गयी थी। पेट में गर्भ भी था। मामले को लेकर चाहे जितनी भी बातें की जाये, लेकिन एक पहलू ये भी है कि पेट में गर्भ लिये जिंदगी गुजार रही निरूपमा असुरक्षा के दायरे में जी रही होगी। ऐसा नहीं होगा कि उसे नहीं पता होगा और न ही उसके मित्र प्रियभांशु को या उसके घरवालों को। ऐसे में परिवारवालों ने ही ऐसा घृणित कदम उठाया या किसी और ने, जांच का विषय है। (वैसे परिवार की भूमिका भी कई सवाल खड़े कर रही है। पहले करंट से मौत बताना और फिर ये पता चलना कि मौत दम घोंटने से हुई है).
ये जांच का भी विषय है कि कैसी परिस्थितियां निरूपमा के जीवन में बन आयी थीं कि उसे ऐसे हालात का सामना करना पड़ा। पेट में गर्भ का पाया जाना पुरुष मित्र प्रियभांशु की भूमिका को भी संदेह के दायरे में खड़ा करता है। उनके बीच के संबंधों पर सवाल खड़े किये जाने चाहिए।
हमें लगता है कि टीवी चैनलों या दूसरी जगहों पर मामले को इसे आनर किलिंग का बताकर फिर से उसी तरह की गलती की जा रही है, जैसा आरुषि हत्याकांड को लेकर किया गया था। निरूपमा के मीडिया जगत से नाता रखने के कारण मीडिया जरूर संवेदनशील है, लेकिन ऐसे में उसे त्वरित प्रतिक्रिया से अलग पूरी जांच को भी परखना होगा। पारिवारिक रिश्ते-नातों की जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा कि मामला क्या है?
वर्तमान सच तो ये है कि मीडिया जगत ने एक होनहार साथी को खो दिया। किसी युवा की दर्दनाक मौत हमेशा चुभती रहती है। रह-रहकर ये बता जाती है कि मौत का किसी से अपनापन नहीं होता है। ऐसे में निरूपमा की मौत भी नहीं भूल सकनेवाली उन मौतों में शामिल हो गयी है, जिसने मानवीय संवेदना को झकझोर दिया है। और जो ये विश्वास करने को कह रही है कि ऐसी घटना परिवार के सुरक्षित दायरे में भी घट सकती है। ये पारिवारिक सुरक्षा क्यों तार-तार हो गयी, ये सोचनवाली बात है। निरूपमा की मौत के दोषियों को सजा जरूर मिले।
Sunday, May 2, 2010
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2 comments:
फिलहाल निरुपमा की आत्मा को शांति मिले यही दुआ है ! जो भी हुआ, जैसे भी हुआ गलत हुआ !
नैतिकता के पतन और धर्म से विमुख होने का स्पष्ट संकेत है यह.
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