जब झाड़ग्राम में हादसे की खबर मिली, तो साफ तौर पर दंतेवाड़ा के बाद लोग ऐसी खबर के लिए मानसिक तौर पर तैयार हो गये होंगे। सवाल ये नहीं है कि अब इन खबरों को लेकर कितनी कवरेज की गयी या हम समस्या को लेकर कितने गंभीर हैं। यहां मामला संवेदना शून्य हो जाने का है। ममता बनर्जी बयान देती हैं कि ये राज्य का लॉ एंड आर्डर प्रॉब्लम है। चलिये मान लिया, लेकिन भारत के तौर पर एक देश है कहां? क्या इस देश में कोई लॉ एंड आर्डर देखनेवाला नहीं है। क्षेत्रीय राजनीति किस कदर किसी समस्या को बढ़ावा देती है, ये यहां साफ तौर पर देखने लायक है। अगर चिदंबरम झारखंड और पश्चिम बंगाल में असहाय महसूस करते हैं, तो इस देश की जनता और तमाम तरह के नेताओं को ये सोचना होगा कि आखिर वे किस भूखंड या क्षेत्र की लड़ाई लड़ रहे हैं। नक्सली जब खुली बगावत पर उतर आये हैं, तो ये तमाम तरह के गिले शिकवे और शिकायतें बेकार हो जाती हैं। सच कहें, तो इस बार काफी हिम्मत कर इस मुद्दे को छूने का मन कर रहा है। क्योंकि संवेदनाओं के मरने का अंत खुद मन से शुरू होता है। तमाम तरह की खबरों को छापते हुए जब ट्रेन पर खुद सवार होकर नक्सली बेल्ट से गुजरना होता है, तो मन कहीं न कहीं उस ऊपरवाले से जरूर दुआ कर रहा होता है। नक्सल समस्या को ग्लैमर की चाशनी में भिगों कर अब ज्यादा दिन नहीं देखा जा सकता है। ये एक ऐसा वीभत्स सत्य है, जहां से सोच का अंत हो जाता है और एक दूसरी नयी सोच शुरू होती है। जो तमाम तरह की बहसों
को अपनी बौद्धिक दलीलों से बेकार करना का तानाबुना बुनती रहती है। कहीं न कहीं तो सरकार के साथ हम लोगों को भी जगना होगा। क्योंकि जब सवाल जिंदगी पर आ जाये, तो जिंदगी बचाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
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1 comment:
ghar laut aayen to ganimat samjhen...
raam bharose hi hai desh...
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