सुबह के अखबार में ब्रिटिश प्रधानमंत्री को बैट-बॉल खेलते देखा. अनुमान के हिसाब से कपिल साहब की उम्र के तो होंगे ही. बराक ओबामा साहब को देखिये, फिटनेस के मामले में सबको मुंह चिढ़ाते हैं. क्लिंटन दंपति को देखें या फ्रांस के राष्ट्रपति महोदय को, सब उम्र की शाम में युवा नजर आते हैं. आप कहिएगा, भाई प्रभात ये क्या मामला लेकर बैठ गए, तो हमारा मकसद यहां किसी का अपमान करना नहीं, बल्कि अपने नेताओं के फिटनेस को लेकर चिंतन करने को लेकर है. डगमगाते पैरों से ज्यादातर नेताओं को भारी भरकम शरीर के साथ चलते देखता हूं, तो लगता है कि हम और हमारे नेता ऐसे क्यों हैं? क्या हम ज्यादा आरामतलब हैं या पश्चिम के नेता फिटनेस को लेकर कुछ खास करते हैं. हम भारतीय लोग पूरी तरह एक दूसरी जिंदगी जीते हैं. एक औसत भारतीय मिडिल क्लास नियमित आमदनी को लेकर संघर्ष करता रहता है. बुढ़ापे के लिए कुछ बचाता है और फिर बेटे-बेटियों की शादी कर मौत का इंतजार करता है. थोड़ा दार्शनिक होकर कहें, तो जिम्मेदारियों का निर्वाह करते चलता है. ये जिम्मेदारी का अहसास उसके मन में इतनी गहरी पैठ बनाए रहती है कि वह कुछ और नहीं सोचता. उसके लिए फिटनेस सिर्फ युवाओं के लिए क्रेज की बातें होकर रह जाती हैं. सच में कहें, तो खुद में भी वैसा जुनून नहीं आ पाता. मेट्रो और बड़े लोगों के पास फिटनेस को लेकर सौ फंडे हैं, वे अपने लिये रास्ता चुन भी लेते हैं. लेकिन अपार्टमेंट और कुकुरमुत्ते की तरह उग आयी कालोनियों के लोग मैदानों के अभाव में सड़कों पर ही टहलते रहते हैं.अब बात नेताओं की करें, तो हमारे नेताओं के लिए रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होती. हम ऊंचे पदों पर भी बुजुर्गों को चुनकर सम्मानित महसूस करते हैं. मुझे तो ऐसेभी याद हैं, जिन्हें हमारे राज्य में नियुक्ति के समय सहारा देकर चलाना पड़ता था. उस समय लगता था कि क्या हमारे देश में ऊंचे पद पर सहारा देकर चलाना पड़ता था. जो भी हो, मामला तो सोचनेवाला है ही. लोग बताते हैं कि नेहरू और गांधी
फिटनेस के मामले में दूसरों को मात देते थे. पर हमारे आज के नेता..... उफ..
Thursday, July 29, 2010
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1 comment:
नेता फिट हो जायें या फिट लोग नेता हो जायें।
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